Breaking News featured उत्तराखंड देश भारत खबर विशेष राज्य

बिना संसाधनों के तिब्बत का नक्शा बनाने वाले रावत को गूगल का सलाम

nain singh rawat बिना संसाधनों के तिब्बत का नक्शा बनाने वाले रावत को गूगल का सलाम

नई दिल्ली। गूगल हर खास मौके और हर खास व्यक्ति को लेकर हमेशा से अपना डूडल तैयार करता आया है। लेकिन इस बार डूडल ने भारत के उस महान पर्वतरोही को लेकर डूडल बनया है, जिनका लोहा अंग्रेज हुकुमत भी मानती थी। दरअसल गूगल ने इस बार आज के उत्तराखंड के रहने वाले पर्वतरोही नैन सिंह रावत काे श्रद्धांजलि देने के लिए अपना नया डूडल बनाया है।

कौन थे नैन सिंह रावत

नैन सिंह का जन्म आज के उत्तराखंड के जिले पिथोरागढ़ के मुनस्यारी तहसील के मिलम गांव में 21 अक्टूबर 1830 को हुआ था। ये बेहत ही दुख की बात है कि जिस उत्तराखंड के वीर सपूत को उत्तराखंड और देश वासी भूल गए हैं उसे एक बार फिर डूडल ने याद करवाया है। रावत ने विश्व में भारत की एक नई पहचान बनाई इस बात में कोई शक नहीं। बता दें कि उन्होंने 19वीं शताब्दी में बिना किसी तामझाम के पूरे तिब्बत को नाप लिया था। इसके अलावा उन्होंने हिमालय की बार-बार यात्राएं कर उस दौरान लोगों को हिमालय का आखों देखा हाल बताया था।

nain singh rawat 2 बिना संसाधनों के तिब्बत का नक्शा बनाने वाले रावत को गूगल का सलामअंग्रेजों ने दी थी तिब्बत का नक्शा तैयार करने की चुनौती

दरअसल नैन सिंह रावत सुर्खियों में तब आए जब उन्होंने बिना किसी साजो-समान के तिब्बत का पूरा नक्शा तैयार कर दिया। रावत को अंग्रेजों ने ये चुनौती दी थी की वो तिब्बत का नक्शा बिना किसी साजो-समान के बनाके दिखाए। गौरतलब है कि जब उस दौरान तिब्बत में किसी विदेशी के पकड़े जाने पर उसे मौत कि सजा दी जाती थी, तब रावत ने अपनी जान की परवहा न करते हुए तिब्बत पहुंचकर उसका पूरा नक्श तैयार कर दिया। उन्होंने केवल रस्सी, थर्मामीटर और एक कंठी के सहारे पूरे तिब्बतो को नाप दिया और उसका एक दम सटीक नक्शा अंग्रेजों के समकक्ष पेश कर दिया। रावत की इसी सूझ-बूझ को देखते हुए उनके नाम के आगे लोगों ने पंडित लगा दिया और उनका नाम पं. नैन सिंह रावत पड़ गया। बता दें कि लगभग 15 साल पहले भारत सरकार ने उनके नाम से डाक टिकट भी जारी किया था।

 

nain singh rawat बिना संसाधनों के तिब्बत का नक्शा बनाने वाले रावत को गूगल का सलाम

अंग्रेजों ने भी माना नैन सिंह का लोहा 

अगर नैन सिंह के कामों पर रोशनी डाले तो उन्होंने साल 1867-68 में वे उत्तराखंड के चमौली के माणा पास से होते हुए तिब्बत गए, जहां उन्हें सोने की खदाने मिली। इसके बाद उन्होंने साल 1873-74 में शिमला से लेह और फिर वहां से यारकंद की पैदल यात्रा की। उनकी आखिरी और सबसे अहम यात्रा 1874-75 में हुई। इस दौरान वो लद्दाख से लहासा तक गए और फिर वहां से असम पहुंचे। अपनी इन यात्राओं के दौरान नैन सिंह ऐसे इलाकों से भी गुजरे जहां उस जमाने में दुनिया का कोई भी इंसान नहीं पहुंच पाया था। यहीं नहीं रावत के इन कारनामों को अंग्रेजी हुकुमत ने भी सराहा था और उन्हें उपहार स्वरुप बरेली के पास के तीन गांवों का जागीरदार बना दिया था।  कामों को देखते हुए कम्पेनियन ऑफ द इंडियन एम्पायर का खिताब भी उन्हें दिया गया। देहरादून के सर्वे ऑफ इंडिया में आज भी नैन सिंह रावत की साहस भरी गाथा दर्ज है। वहीं 1 फरवरी 1882 को रावत इस दुनिया से रुकस्त हो गए।

Related posts

बिहार : गवाह की हत्या मामले में शहाबुद्दीन को जमानत

bharatkhabar

जानें ‘हेपेटाइटिस सी वायरस की खोज’ के लिए किन तीन वैज्ञानिकों को मिला चिकित्सा में नोबेल पुरस्कार

Samar Khan

पश्चिम बंगाल से पहले असम पहुंचे पीएम मोदी, भूमिहीन लोगों को दिया बड़ा तोहफा

Aman Sharma