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अलविदा 2017- भाजपा की रणनीति से देवभूमि की फिजा में घुला केसरिया रंग

kamal अलविदा 2017- भाजपा की रणनीति से देवभूमि की फिजा में घुला केसरिया रंग

नई दिल्ली। साल 2017 की शुरूआत ही राजनीति की सरगर्मी के साथ शुरू हुई थी। पांच राज्यों में विधान सभा चुनाव पूरे सबाब पर था। पंजाब,गोवा,मणिपुर, उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड में चुनावी बिगुल बज चुका थी। पंजाब और गोवा पर भाजपा का कब्जा था तो मणिपुर और उत्तराखंड पर कांग्रेस काबिज थी। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का परचम लहरा रहा था। उत्तर प्रदेश के साथ दिल्ली की राजनीति में खासा दखल उत्तराखंड का भी रहता है। वैसे इसको जीतने और हथियाने की रणनीति मार्च 2016 में ही भाजपा ने बनाने शुरू कर दी थी। कांग्रेस पार्टी के तेवरों से बागी बने विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल कर वहां पर राजनीतिक संकट पैदा कर भाजपा ने अपने मसूबे जाहिर कर दिए थे।

kamal अलविदा 2017- भाजपा की रणनीति से देवभूमि की फिजा में घुला केसरिया रंग

कांग्रेस की आपसी रंजिश का उठाया फायदा
उत्तराखंड के चुनावी समर की शुरुआत 2016 अप्रैल से ही हो चुकी थी। जब कांग्रेस के बाग़ी विधायक भारतीय जनता पार्टी के खेमे में आ गए थे। लेकिन न्यायपालिका के दख़ल के बाद सूबे में कांग्रेस की सरकार तो बनी रही। लेकिन कांग्रेस की सरकार अंदर से खोखली हो चुकी थी। ऐसे में कांग्रेस के लिए सत्ता में वापसी के साथ भाजपा की तिलिस्म को तोड़ना भी एक बड़ी चुनौती थी। कांग्रेस पहले से ही आपसी विवाद से उलझी हुई थी इसके साथ ही पार्टी पर लगातार भ्रष्टाचार और विकास के कामों से दूर होने का भी आरोप लग रहा था। ऐसे में सूबे में सप्ताह के परिवर्तन के आसार साफ़ नज़र आ रहे थे। भाजपा ने जनता के बीच कांग्रेस की नाराज़गी को भुनाने के लिए परिवर्तन यात्राओं के तौर पर कांग्रेस पर सीधा निशाना शुरू कर दिया। कांग्रेस के पास एक तो भाजपा का जवाब देने के लिए कोई विकल्प नहीं था। तो दूसरी तरफ़ पार्टी ख़ुद ही भीतरघात से पूरी तरह से टूट चुकी थी। बचे हुए लोग पार्टी के नेतृत्व को स्वीकार नहीं कर रहे थे। ऐसे में पार्टी 2 खेमे में बँटी नज़र आ रही थी। एक खेमा था मुख्यमंत्री हरीश रावत का तो दूसरा था प्रदेश उपाध्यक्ष किशोर उपाध्याय का, दोनों की राजनीतिक टक्कर ने जहाँ भाजपा के लिए रास्ता साफ़ कर दिया वहीं सूबे में कांग्रेस को एक करारी हार हारने पर मजबूर कर दिया।

कांग्रेस की नाकामी बनी हार की मुख्य वजह
कांग्रेस शासन काल की नाकामियों को भारतीय जनता पार्टी ने 2017 विधानसभा चुनावों में जमकर भुनाया। विकास के मुद्दे पर लगातार कांग्रेस सरकार को भाजपा घेरती रही इसके साथ ही बेरोज़गारी पलायन अशिक्षा और आर्थिक तंगी सूबे के लिए सबसे बड़े और ख़ास मुद्दे थे। इन मुद्दों पर कांग्रेस के पास कोई भी जवाब नहीं था। इसके साथ ही कांग्रेस में पूरे भीतरघात और पार्टी से बाग़ी बने विधायकों से निपटने का कोई फार्मूला नहीं था। कांग्रेस के बाग़ी बने विधायक भारतीय जनता पार्टी के लिए रामबाण साबित हो गए। पूरे चुनाव में इन विधायकों ने कांग्रेस की जमकर फ़ज़ीहत की और जनता के बीच कांग्रेस की पोल को खोल दी। कई भ्रष्टाचार के मामलों को उजागर करने की बात भी हुई। ऐसे में कांग्रेस के पास इन सारे तीरों का कोई जवाब नहीं था। नतीजा वही हुआ कांग्रेस की उत्तराखंड में करारी हार हुई और कमल का फूल खिल ही गया।

क्षेत्रीय पार्टियों का वजूद हुआ खत्म                                                                                                                                                   उत्तराखंड के चुनाव में बसपा सपा के अलावा अन्य क्षेत्रीय दल भी शामिल थे। लेकिन इन क्षेत्रीय दलों के अलावा बसपा सपा को कोई ख़ास सफलता उत्तराखंड के चुनाव में नहीं मिली। वो किसी भी किंग मेकर की भूमिका में नहीं आ पाए। भारतीय जनता पार्टी ने यहाँ पर एकतरफ़ा बहुमत हासिल कर लिया था। ऐसे में उत्तराखंड के चुनाव के बाद यहाँ पर क्षेत्रीय दलों के वजूद को लेकर भी अब सवाल उठने लगे हैं।

Piyush Shukla अलविदा 2017- भाजपा की रणनीति से देवभूमि की फिजा में घुला केसरिया रंगअजस्र पीयूष

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