गोंडा। सरकारी योजनाओं के नाम पर जनता से करों के रूप में वसूले गए अरबों रुपये खर्च कर सरकार के नेता मंत्री व विभागीय अधिकारी करोड़पति तो बन जाते हैं लेकिन इनका लाभ आम जनता नहीं पाती है और फिर कुछ ऐसा करने को मजबूर हो जाती जो संवैधानिक रूप से गलत भी ठहराया जाता है। विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में लोकतंत्र को जिन्दा रखने वाली आमजनता व किसानों की मज़बूरी व दुर्दशा की एक ऐसी ही कहानी उत्तर प्रदेश के गोण्डा से सामने आई है। जिसे आप भी देखेंगे तो दांतों तले उंगलियां दबाने को मजबूर हो जायेंगे।
ये कहानी जिले के कटरा विधान सभा क्षेत्र की है। इसे प्रदेश की समय-समय पर बनने वाली सरकारों, स्थानीय नेताओं व मंत्रियों, जिला प्रशासन और सिंचाई विभाग की सामूहिक लापरवाही कहें या फिर इस गोंडा किसानों व ग्रामीणों का दुर्भाग्य या फिर मज़बूरी कहें। यंहा लगभग 20 किलोमीटर बने एक नहर में पानी नहीं छोड़ा गया जिससे इस क्षेत्र लगभग दर्जनभर गांवों के सैकड़ों किसान पानी के बिना जहां अपनी किसानी ठीक से नहीं कर पाए, वहीं मज़बूर हो नहर को ही कब्ज़ा कर खेती करने लगे।
दरअसल 20 साल पहले बनी इस नहर में आज तक पानी नहीं आया जिससे लगभग 20 किलोमीटर बने इस नहर के क्षेत्र के दर्जनों गांवों के हज़ारों किसान की खेती पानी न मिलने कारण प्रभावित हुई और उसी का आलम यह है कि इन गांवों के सैकड़ों किसानों ने इस नहर को कब्ज़ा कर इसी में खेती करनी आरम्भ कर दी और आज ये लगातार फसलें काट रहे हैं।
यहां की एक महिला किसान रामादेवी शर्मा का कहना है कि साहब जब से मैं शादी करके इस गांव आयीं हूं तबसे इस नहर में पानी नहीं आया। नहर में जुताई-बुआई की बात बताते हुए वो बोल रही है कि सरकार लोग पानी छोड़े ही नहीं तो हम लोग खेती कर रहे हैं।
किसानों की बात करने वाली प्रदेश और देश की सरकारें किसानों की संपन्नता और सुविधा के वादे करके पांच-पांच साल सत्ता सुख भोगकर आती और जाती रहीं। दुर्दशा, भुखमरी और कर्ज का शिकार हमारे देश का वही किसान रहा जो इस देश की धड़कन है। अब निर्णय दुर्दशा के शिकार यही किसान लेंगें कि 2017 के चुनाव में उनके धड़कनों को जिंदगी कौन सी सरकार मुहैया करायेगी जो इनकी जीवनरेखा के रूप में गांव-गांव में दौड़ रही इन नहरों में भरपूर पानी मुहैया कराने के लिए ईमानदारी से किसानों की सेवा कर सकेगी।
(विशाल सिंह, संवाददाता)