सवाल- एक अधिकारी बनने के बाद निजी जिंदगी पर कोई प्रभाव पड़ा है?
जवाब- बहुत प्रभाव पड़ता है एक अधिकारी की यही समस्या है कि वो हर समय अधिकारी ही होता है अगर आप कभी परिवार के साथ भी कहीं बाहर हों तो भी लोग अपनी परेशानी को बताने के लिए अर्जी लेकर आते हैं तो अधिकारी होने का निजी जीवन पर प्रभाव तो होता ही है। जिसे एक अधिकारी के तौर पर दरकिनार नहीं किया जा सकता है।
सवाल- अपनी शिक्षा के बारे में कुछ बताना चाहेंगे?
जवाब- मद्रास वेटेनरी कॅालेज से मैनें अपनी ग्रेजुएशन की है। मैनें पोस्ट ग्रेजुएशन एनीमल जेनेटिक में किया है ये समय मेरे जीवन का बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा था क्यूंकि मेरे कुछ सीनियर से इंस्पायर होकर मैनें खुद को इसके लिए तैयार करना शुरू किया था। मैं समझता हूं मेरे कॅालेज का एक अहम रोल है मेरे इस दिशा में आने का।
सवाल- आम जिंदगी की तुलना में ऑफिसर बनने के बाद आपके विचारों में किस तरह का बदलाव आया है?
जवाब- हां, बाहर से देखने में जो चीजें दिखती हैं और इसके अंदर आने के बाद काफी अंतर पाया। पहले हम सरकार को एक उपेक्षक के तौर पर देखते थे। सिस्टम के अंदर आने के बाद हम समझ सकते हैं कि एक-एक चीज को क्रिया में लाने में कितनी अड़चने आती हैं। किसी योजना को जमीनी तौर पर लाने के लिए कितनी जगहों से होकर गुजरना पड़ता है। लोकतात्रिंक देश को रूल करना बहुत मुश्किल होता है। सरकार को सीमित दायरों में रहकर काम करना होता है।
सवाल- काम और निजी जिंदगी के बीच तालमेल कैसे बिठाते हैं?
जवाब- तालमेल बिठाना काफी मुश्किल है, और तालमेल बिठा पाया हूं ये भी नहीं कह सकता क्यूंकि कई बार परिवार वालों को काम की वजह से निराश भी करना पड़ता है। जितना समय पत्नी और बच्चों को देना चाहिए वो नहीं दे पाते ये सच्चाई है।
(नितिन गुप्ता, न्यूज एडिटर)