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आपातकाल: आजाद भारत के इतिहास का काला दिन

Indira Gandhi 02 आपातकाल: आजाद भारत के इतिहास का काला दिन

नई दिल्ली। भारत के इतिहास में 25 जून 1975 का दिन स्वतंत्र भारत काला दिन माना जाता है। 41 साल बाद भी आजाद भारत में आपातकाल का समय काला अध्याय के तौर पर याद किया जाता है। लोकतांत्रिक भारत का यह बुरा वक्त 21 मार्च 1977 में खत्म हुआ था। राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के अनुरोध पर धारा 352 के तहत आपात काल की घोषणा की थी। आजाद भारत के दौर का यह सबसे विवादास्पद दौर माना जाता है। लोकनायक जयप्रकाश नारायण के अनुसार यह सबसे काले घंटो का दौर था।

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विपक्षी पार्टियां काफी समय से कांग्रेस पार्टी पर 1971 के चुनाव में धांधली का आरोप लगा रहे थे। जयप्रकाश नारायण और उनके समर्थकों ने छात्रों, किसानों, मजदूर संघों का समर्थन जुटा लिया। गुजरात में विपक्षी गठबंधन जनता पार्टी ने कांग्रेस को हरा दिया। 12 जून 1975 इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को चुनाव अभियान के दौरान सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करने का दोषी पाया और छह साल तक उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी थी।

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चार साल के बाद जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी के खिलाफ फैसला दिया था। यही फैसला आपातकाल लागू करने का मुख्य कारण बना। सरकार ने सुरक्षा, पाकिस्तान के साथ युद्ध, सूखा, 1973 के तेल संकट का हवाला देते हुए इन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया। सरकार ने दावा किया कि हड़तालों और विरोध प्रदर्शनों के कारण देश की गति रुक रही है। पार्टी के मुट्ठी भर लोगों से इंदिरा गांधी ने बातचीत की। इसके बाद पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे ने इंदिरा गांधी को देश में इंटरनल इमर्जेंसी लगाने की सलाह दी। उन्होंने राष्ट्रपति के लिए लेटर का मसौदा तैयार किया। लिखा गया कि आंतरिक अस्थिरता के कारण देश की सुरक्षा को खतरा है।

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आपातकाल लागू करने के लगभग दो साल बाद विरोध की लहर तेज़ होती देख प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लोकसभा भंग कर चुनाव कराने की सिफारिश कर दी। चुनाव में आपातकाल लागू करने का फ़ैसला कांग्रेस के लिए घातक साबित हुआ। ख़ुद इंदिरा गांधी अपने गढ़ रायबरेली से चुनाव हार गईं। जनता पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में आई और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। संसद में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 350 से घट कर 153 पर सिमट गई और 30 वर्षों के बाद केंद्र में किसी ग़ैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ।

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कांग्रेस को उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में एक भी सीट नहीं मिली। नई सरकार ने आपातकाल के दौरान लिए गए फ़ैसलों की जांच के लिए शाह आयोग गठित की गई। हालांकि नई सरकार दो साल ही टिक पाई और अंदरूनी अंतर्विरोधों के कारण 1979 में सरकार गिर गई। उप प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने कुछ मंत्रियों की दोहरी सदस्यता का सवाल उठाया जो जनसंघ के भी सदस्य थे। इसी मुद्दे पर चरण सिंह ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया और कांग्रेस के समर्थन से उन्होंने सरकार बनाई लेकिन चली सिर्फ़ पांच महीने। उनके नाम कभी संसद नहीं जाने वाले प्रधानमंत्री का रिकॉर्ड दर्ज हो गया।

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