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दुधवा नेशनल पार्कः कभी था आकर्षण का केंद्र, और अब है बुरा हाल

1 4 दुधवा नेशनल पार्कः कभी था आकर्षण का केंद्र, और अब है बुरा हाल

लखीमपुर खीरी। दुधवा नेशनल पार्क के वजूद पर मंडराते साए से क्यूं बेखबर है वन विभाग व सरकार समय रहते अगर इसकी भौगोलिक स्थित को समझे बगैर योजनाएं क्रिन्यानवित की जाती है तो बहुत कुछ खो चुका दुधवा नेशनल पार्क कही वजूद को बचाने की घडी न आजाय और सब कुछ खो दे। प्रदेश का इकलौता दुधवा नेशनल पार्क अपनी सुन्दरता व लोकप्रियता के कारण पूरे विश्व मे प्रखयात है।

12 दुधवा नेशनल पार्कः कभी था आकर्षण का केंद्र, और अब है बुरा हाल

इसमें हजारों प्रकार के तमाम जन्तुओं का विचरण करना प्राकृतिक की अनमोल धरोहर के रूप मे जानी जाती थी लेकिन वन विभाग की योजनाय सही तरह से भौगोलिक स्थित का जायजा लिए बगैर क्रियान्वित की गई जिससे दुधवा नेशनल पार्क के बेस कीमती साखू, साल, सागौन, शीसम, जामून, बडहल व हजारों प्रकार के पेडों तथा इसमे विचरण करते दुर्लभ प्रजाति के पशु पछियों व जीव जन्तुओं की जान पर बन कर इनकी संख्यां मे धीरे धीरे गिरावत होती जारही है। जीव जंनतुऔं की प्रजातियों का विलुप्त होना और बेस कीमती पेडों का सूखना वन विभाग के अन्देखी के चलते हुआ। 884 वर्ग किमी0 के विशाल क्षेत्र मे फैला दुधवा नेशनल पार्क कह स्थापना दो फरवरी 1977 मेंकी गई थी उसमें वन प्रबन्धन वन्य जीव की संरक्षन एंव सवंर्धन प्रमुख उददेश्य थे।

दुधवा नेशनल पार्क की स्थापना के 38 वर्ष हो चुके है। इनमें से सही मायने मे किस उददेश्य की पूर्ति हो पाई है आज यह सवाल हर उस व्यकित की जुबान पर है जो वन तथा वन्य जीव प्रेमी है। इस लिये सन 2000-2001 से लागू दस वर्षीय मैनेजमेन्ट प्लान आशातीत सफलता प्राप्त नही हो सकी। वन्य जीवों की लगातार घटती जन संख्या तमाम वन्य जीवों के साथ ही दुधवा नेशनल पार्क को मिले बफर जोन जैसे शानदार उत्तर दान में अपने परिवार को बढाने के बजाय धीरे धीरे विलुप्तता की कगार पर पहुच रहै है। फायर सीजन के दौरान पहले वन विभाग और ग्रामीण जंग लमे लगी आग को मिल कर बुझाते थे और अब ग्रामीणों और वन विभाग मे दरार की चौडी खांई खुद जाने की वजह से वनों तथा वन्य जीवों को बे मौत मरना पडता है। वन तथा वन्य जीवों को होने वाले नुकसान वन विभाग और आम आदमी के बीच बढी दूरियां इसके लिये हितकारी नही कही जा सकती।

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इसका प्रत्यक्ष प्रमाण ये कि वन तथा वन्य जीवों की धरती पर जनसंख्या दुधवा नेशनल पार्क की स्थापना से पहले मानव निषेध नही था और घांस फूंस तथा जलौनी लकडी तथा पालतू मवेशियों के चराने के लिये जंगल मे जाना आदि उपज का लाभ तराई के ग्रामीणों को मिलता था। अब इसे ग्रास लैन्ड मैनेजमेन्ट के तहत जलाया जाता है। इससे जमीन पर रेंगने वाले दुर्लभ प्रजाति के जीव जन्तु जल कर मर जाते है और गिरी पडी लकडी तथा घास फूंस की निकासी न कराकर उसे जला कर कोयला बना दिया जाता है। यही नही इस नुकसान के साथ राजस्व का भी नुकसान उठाना पडता है। उधर ग्रामीण जनता भी अपनी जरूरतो को पूरा करने के लिये चोरी छिपे साखू, सागौन के बेस कीमती पेडों को काटकर अपनी जरूरतो को पूरा करते है। क्यूंकि इस पूरे क्षेत्र की भौगौतिक विषय है। दुधवा नेशनल पार्क बनने के बाद ग्रामीणों का अन्दर जाना प्रतिबन्धित होने से ग्रामीणों का स्वभाव इनके प्रतिक क्रूर हो गया इसलिये वन तथा वन्य जीवों को नुक्सान पहुचाने को मंसूबे को बल मिल गया।

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वनाधिकार कानून 2007 लागू होने जाने के बाद वन उपज पर अपना अधिकार हासिल करने की आम आदमी मे तेजी आई जिससे ग्रामीणों और वन विभाग मे काफी टकराव हुआ। जिससे ग्रामीणों और वन विभाग मे दरार की चौडी खांई खुद गई जो बाते वनों तथा वन्य जीवों के लिये खतरनाक साबित हुई। इससे होने वाले नुकसान सें वन तथा न्य जीव काफी प्रभावित हो रहै है। इस खाई को पाटना जरूरी है वरना आने वाले दिनों मे वनों तथा वन्य जीवों मंडरा रहा खतरा बच सके। लाईफ लाईन सुहेली नदी का वजूद भी खतरे में दुधवा नेशनल पार्क के बीच बह रही सुहेली नदी को यु तो लाईफ लाईन कही जाती है लेकिन हर साल की बाढ ने इस नदी को आंशिक गहराई छोड कर पूरी नदी पट गई है जिससे इस नदी का वजूद खतरे मे पर गया है। गर्मियों के महीने मे वन्य जीव प्यास से व्याकुल होकर जंगल से बाहर पानी की तलाश मे निकलते है क्योंकि नदी मे पानी सूख जाता और वन्य जीवों को शिकार हो कर अपनी जान गववानी पडती है।

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