मुंबई। बीसीसीआई की स्पेशल जनरल मीटिंग में साफ़ हो जाएगा कि बीसीसीआई आईसीसी के नए रिवेन्यू मॉडल के खिलाफ़ अपनी लड़ाई जारी रखेगा या फिर एक सुलह की ओर बढ़ेगा। बीसीसीआई सदस्यों से इस अहम मुद्दे पर उनकी राय लेने के बाद चैंपियन्स ट्रॉफ़ी के लिए भारतीय टीम के चयन करने की बात है, लेकिन ये सब किस तरह और कैसे होगा ये मीटिंग के बाद ही साफ़ हो सकेगा।
वैसे बीसीसीआई के कुछ सूत्रों की मानें तो कुछ सदस्य चैंपियन्स ट्रॉफ़ी से पुल आउट के पक्ष में नहीं हैं। 2014 में हुए MPA यानि मेंबर्स पार्टिसिपेशन एग्रीमेंट के अनुसार अगर भारत इसके खिलाफ़ जाता है तो उस पर क़रीब 2000 करोड़ रुपए का जुर्माना लग सकता है।
बात अगर बीसीसीआई की करें तो उसके पास यही मौक़ा है कि वो अपनी लड़ाई लड़ सके क्योंकि 20 जून के बाद नया क़ानून और संविधान आ जाएगा जिसके बाद ये मुमकिन नहीं हो सकेगा। अहम बात ये कि बीसीसीआई का मानना है कि 2014 में हुए MPA के नियमों को आईसीसी ने ताक़ पर रख दिया है। जिसके चलते सवाल आईसीसी को देना है ना कि बीसीसीआई को।
ख़बरों के मुताबिक 23 बीसीसीआई सदस्यों ने आईसीसी के खिलाफ़ लीगल नोटिस भेजे जाने का समर्थन किया है, लेकिन क्योंकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित CoA ने बीसीसीआई को ऐसा करने से मना किया था। इसलिए फ़िलहाल नोटिस नहीं भेजा गया है और SGM में इस पर भी बात की जाएगी।
इससे पहले इसके लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमिटी ऑफ़ एडमिनिस्ट्रेटर्स ने बीसीसीआई को निर्देश दिया था। निर्देश के मुताबिक़ बीसीसीआई जल्द से जल्द चयनकर्ताओं की बैठक करवा कर टीम का चयन करना था। इतना ही नहीं बीसीसीआई से पूछा गया था कि आखिर डेडलाइन निकल जाने तक टीम का चयन क्यों नहीं हुआ।
COA ने बीसीसीआई के रवैये पर भी सवाल उठाया था,और अभी भी CoA ने साफ़ कहा कि चैंपियन्स ट्रॉफ़ी से पुल आउट के बारे में बीसीसीआई बिलकुल ना सोचे और ये भी समझे की 570 मिलियन डॉलर मिलना अब बीसीसीआई को मुमकिन नहीं है।
ख़बरों के मुताबिक COA ने नॉर्थ और ईस्ट ज़ोन के सदस्यों से दिल्ली में मुलाक़ात भी की है। दोनों ज़ोन भारत के चैंपियंस ट्रॉफ़ी में खेलने के पक्ष में हैं। बीसीसीआई के कुछ सदस्यों का मानना है कि आईसीसी से बातचीत के ज़रिए ही समाधान निकाला जा सकता है।
MPA ब्रिटेन के क़ानून के मुताबिक बनाया गया था, इसलिए बीसीसीआई ने भी वहीं की एक लॉ फ़र्म से बातचीत के बाद ही नोटिस भेजने पर मन बनाया है। लड़ाई सिर्फ़ बीसीसीआई को होने वाले 35 फ़ीसदी नुकसान की ही नहीं बल्कि उसके वर्चस्व की भी है। इन सब बातों से इतना तो तय है कि जो भी फ़ैसला होगा, उसका असर लंबे समय तक भारतीय क्रिकेट पर दिख सकता है।