नई दिल्ली। हिंदू धर्म में भगवान शिव को भोले का स्थान दिया गया है। प्रदोष व्रत में भगवान शिव की उपासना की जाती है ये व्रत हिंदू धर्म के सबसे शुभ व महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है। प्रदोष व्रत चंद्र मास के 13 वें दिन पर रखा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि प्रदोष के दिन भगवान शिव की पूजा करने से व्यक्ति के पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष प्राप्त होता है।
शास्त्रों में कहा गया है प्रदोष व्रत को रखने से दो गायों को दान देने के समान पुन्य मिलता है। प्रदोष व्रत को लेकर कई कथाए प्रचलित है। एक दिन जब चारों और अधर्म की स्थिति होगी, अन्याय और अनाचार का एकाधिकार होगा, मनुष्य में स्वार्थ भाव अधिक होगा, व्यक्ति सत्कर्म करने के स्थान पर नीच कार्यों को अधिक करेगा। उस समय जो व्यक्ति त्रयोदशी का व्रत रख, शिव आराधना करेगा, उस पर शिव कृपा होगी। इस व्रत को रखने वाला व्यक्ति जन्म- जन्मान्तर के फेरों से निकल कर मोक्ष मार्ग पर आगे बढता है।
जानिए कैसे रखें प्रदोष व्रत:-
-प्रदोष व्रत करने के लिए मनुष्य को त्रयोदशी के दिन सूर्य उदय से पहले उठना चाहिए।
– भगवान भोले नाथ का स्मरण करें।
-इस व्रत में आहार नहीं लिया जाता है।
-पूरे दिन उपवास रखने के बाद सूर्यास्त से एक घंटा पहले, स्नान आदि कर श्वेत वस्त्र धारण करें।
-पूजन स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करने के बाद, गाय के गोबर से लीपकर, मंडप तैयार करें।
-इस मंडप में पांच रंगों का उपयोग करते हुए रंगोली बनाई जाती है।
-प्रदोष व्रत कि आराधना करने के लिए कुशा के आसन का प्रयोग किया जाता है।
-इस प्रकार पूजन की तैयारियां करके उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे।
-व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का उद्यापन करना चाहिए।
-व्रत का उद्यापन त्रयोदशी तिथि पर ही करना चाहिए।