नई दिल्ली। यूपी की योगी सरकार लाख वादे और दावे करे लेकिन उसके अधिकारी ही उसका पलीता लगा देते हैं। अब किसानों की ऋण मोचन योजना को ही देख लीजिए चुनाव के दौरान किसानों की कर्ज माफी का वादा भाजपा ने किया था। सत्ता में आते ही अपने वादे को अमल में लाने के लिए कैबिनेट में प्रस्ताव पारित हुआ। योजना बनी जिलों के प्रशासनिक अमले को इस काम में लगाया गया। लिस्ट तैयार हुई तो फंड जारी किया गया लेकिन फिर खेल हो गया किसानों को जो आस थी ठीक उसके विपरीत किसी को 10 पैसे तो किसी को 54 पैसे कर्ज माफी का प्रमाण पत्र प्रशासन की ओर से जारी कर दिया गया।
लिस्ट अधिकारियों के कार्यालय से निकल पर सोशल मीडिया और मीडिया तक जा पहुंची । जिसके बाद विपक्ष सरकार पर किसानों के साथ मजाक करने का आरोप लगाते हुए हमलावर हो गया । सरकार ने अपनी किरकिरी देखते हुए प्रशासनिक अमले को झाड़ लगा दी। इसके साथ ही साफ और सख्त निर्देश जारी किए गए कि 10 हजार से कम राशि पर प्रमाण पत्र ना तो जारी किया जाए ना ही किसानों को प्रमाण-पत्र वितरण कार्यक्रम में बुलाया जाए। हांलाकि उनका कर्ज जरूर माफ कर दिया जाए।
यूपी में कर्ज माफी की लाइन में बड़ी संख्या में किसान मौजूद हैं ऐसे में प्रशासन की ओर से मिले इस प्रमाण-पत्र का अभी तक कई किसान मतलब खोजने में लगे हुए हैं। इस मामले में योगी सरकार के मंत्रियों की अपनी -अपनी राय है कोई इसे तकनीकि चूक बता रहा है तो कोई इसे कर्ज माफी के बाद बची राशि बताकर अपना पल्ला झाड़ रहा है। लेकिन अब बेहाल किसान कहां जाएं और किससे अपनी फरियाद करें उन्होने कर्जमाफी के सपने के बल पर भाजपा का वोट दिया था। लेकिन अब 10 रूपये से लेकर 50 रूपये तक के प्रमाण पत्र मिलने पर इनका वो सपना टूटता नजर आ रहा है।