नई दिल्ली। 4 नवम्बर को हिन्दू पंचाग के अनुसार कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि है। इस तिथि को देव दीपावली के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक एक राक्षस का वध किया था। इस राक्षस के आतंक से धरती ही नहीं बल्कि देवलोक तक कांप गए थे। इस राक्षस के अंत के बाद देवताओं ने भोलेनाथ को नया नाम त्रिपुरारी कह कर बुलाया था। कहा जाता है कि इसी तिथि को भगवान शंकर ने अपनी नगरी काशी के राजा दिवोदास के अहंकार का भी विनाश किया था।
जिसके बाद देवताओं और मानवों ने मिलकर दीपावली का पर्व मनाया था। इस पर्व को देव दीपावली के नाम से बाद में विख्यात किया गया था। यह पर्व ऋतुओं में श्रेष्ठ शरद ऋतु माह से श्रेष्ठ कार्तिक माह और तिथि में श्रेष्ठ पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस तिथि और इस दिन को देवताओं का दिन भी कहा जाता है। कहा जाता है कि इस दिन स्नान दान पूजन का फल अक्षय होकर मनुष्य को मिलता है। क्योंकि इस दिन देवताओं का वास धरती पर होता है।
देव दींपावली के इस पावन पुनीत अवसर पर कुछ विशेष उपायों और पूजन से व्यक्ति के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। इससे व्यक्ति का निराशाजनक जीवन सुखमय होकर बीतने लगता है। इस दिन व्यक्ति को प्रात:काल पवित्र नदियों में स्नान दान कर शिवालयों में भगवान भोलेनाथ का पूजन और अर्चन करना चाहिए । पूजन में गौघृत से दीपदान करना शुभ माना जाता है। भगवान भोले नाथ को चंदन धूप फूल आदि अर्पित कर खीर पूड़ी और बर्फी का भोग लगाना चाहिए।