यूपी राज्य

एनजीटी को नीचा दिखाकर हो रहा भैंसाली बस अड्डे का निमार्ण

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मेरठ। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी NGT में दाखिल आपत्तियों के बाद भी मेरठ में भैसाली बस अड्डे पर धड़ल्ले से निर्माण किया जा रहा है। डीजल बसों से होने वाले प्रदूषण और जाम से मुक्ति पाने के लिए 2 बस अड्डों को शहर से बाहर ले जाने की कवायद चल रही है। लेकिन इसके बावजूद अफसरों ने दांव-पेंच से सरकारी बजट हासिल कर लिया और बस अड्डे पर निर्माण शुरू करा दिया है।

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Construction of Bhasali bus stand

आपको बता दें कि मेरठ के भैंसाली बस अड्डे से आगरा, दिल्ली, आन्नद विहार, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर और उत्तराखंड के शहरों के लिए आती-जाती हैं। इस बस अड्डे के घनी आबादी के बीच होने के वजह से जाम सबसे बड़ा मुद्दा है। साथ ही डीजल बसों से निकलने वाला प्रदूषण मेरठ शहर और कैंट इलाके की हवा को बिगाड़ रहा है। करीब 60 साल पुरानी बस अड्डे की बिल्डिंग इसी साल जनवरी में अफसरों की सांठगांठ से ढ़हा दी गयी थी और अब नया निर्माण शुरू कर दिया गया है। इस अड्डे को शहर से बाहर भेजने की योजना है और एनजीटी बाकायदा इस मामले पर सुनवाई जारी रखे हुए है।

 

लखनऊ में बैठे बड़े अफसरों से सांठ-गांठ करके मेरठ के रोडवेज अधिकारियों ने बस अड्डे के निर्माण के लिए 5 करोड़ का बजट सरकार से जारी करा लिया है। यूपी की कुख्यात संस्था पैकफेड को इस निर्माण का जिम्मा दिया गया है। शहर के बीचों-बीच बने सोहराब गेट और भैसाली बस अड्डा प्रदूषण फैलाने के अलावा मेरठ के स्मार्ट सिटी बनने की राह का रोड़ा भी है। मेरठ 3 बार स्मार्ट सिटी की मैराथन में मुंह की खा चुका है और अक्टूबर तक उसके पास खुद को इस दौड़ में साबित करने का आखिरी मौका है। एनजीटी में दाखिल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्टस बताती हैं, कि शहर के वाशिन्दों के लिए इस अड्डे का प्रदूषण जानलेवा है। लेकिन दोनों दलीलों को यूपी परिवहन के अफसर नहीं मानते हैं।

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शहर के बाहर नए बस अड्डों के लिए प्रशासन के पास जमीनें नहीं है। ये भी सच है कि मेरठ विकास प्राधिकरण महायोजना में इन अड्डों को पुरानी जगह ही रखे हुए है। लेकिन स्मार्ट मेरठ के लिए आधुनिक बस अड्डे जरूरी हैं। यह जरूरत परिवहन निगम के अफसरों की समझ में शायद नहीं आती। तभी तो अफसरों ने शासन को गुमराह करके निर्माण का बजट हासिल कर लिया और पैकफेड जैसी बदनाम संस्था से यह निर्माण कराया जा रहा है।

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