नई दिलली। बिहार में इन दिनों राजनीति घमासान मचा हुआ है। जहां एक तरफ पहले से गठबंधन टूटने की कई दिनों पहले से अटकलें लगाई जा रही थी तो अब वह सभी अटकलें सच हो गई हैं और बिहार में गठबंधन टूट गया है। वही बिहार में अब देखना यह होगा कि कौन अपना बहुमत साबित कर पाता है। इस वक्त बिहार में सरकार बनाने के लिए 132 विधायकों का समर्थन चाहिए। सीएम नीतीश कुमार के पास इस वक्त 71 सांसदों हैं तो लालू की आरजेडी के पास इस वक्त 80 विधायक हैं। कांग्रेस के पास इस वक्त में 27 तो एनडीए के पास इस वक्त में 58 विधायक हैं।
बिहार में सत्ता की कुर्सी संभालने के लिए राज्यपाल द्वारा सीएम नीतीश को शुक्रवार को वक्त दिया गया है। शुक्रवार को सीएम नीतीश कुमार को सत्ता में आने के लिए अपना शक्ति प्रदर्शन करना होगा। ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि एनडीए की तरफ से नीतीश कुमार को बहुमत मिल सकता है। लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है तो राज्यपाल तेजस्वी को भी एक मौका देंगे अपना शक्ति प्रदर्शन करने के लिए। अगर तेजस्वी को मौका दिया जाता है तो सदन में उम्मीद जताई जा रही है कि कांग्रेस का साथ उन्हें मिल जाएगा। लेकिन अगर कोई भी इस रेस में नहीं जीत पाया तो बिहार में राष्ट्रपति शासन भी लग सकता है।
मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद शुक्रवार को सीएम नीतीश कुमार ने कैबिनेट की बैठक बुलाई है। बैठक में 28 जुलाई को विस में विशेष सत्र बुलाने का फैसला लिया गया है। ऐसे में शुक्रवार को नीतीश कुमार अपना बहुमत साबित करने वाले हैं। बुधवार को महागठबंधन से इस्तीफा देने के बाद गुरुवार सुबह नीतीश कुमार ने छठी बार सीएम पद की शपथ ली है। ऐसे में बीजेपी नेता सुशील मोदी ने उनके साथ उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली है। बिहार में बदले सियासी हालात और नीतीश-मोदी की दोस्ती पर आरजेडी के साथ-साथ कांग्रेस भी हमलावर है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने गुरुवार को नीतीश कुमार पर जमकर हमला बोला। नीतीश कुमार पर धोखे का आरोप लगाते हुए राहुल ने कहा- मुझे 3 महीने से मालूम था कि सियासी खिचड़ी पक रही है। पर यहां अब सवाल ये उठता है कि अगर कांग्रेस या राहुल गांधी को ये पता था कि ये उठापटक होने वाली है तो बिहार में महागठबंधन बचाने के लिए कुछ किया क्यों नहीं गया?
बता दें कि ऐसे वक्त में जब राहुल गांधी एक्टिव तरीके से कांग्रेस की अगुवाई करने की कोशिश कर रहे हैं। अक्टूबर में पार्टी अध्यक्ष के रूप में उनकी ताजपोशी की तैयारियां भी चल रही हैं। ऐसे में बिहार में सत्ता महागठबंधन की बजाए एनडीए के खेमे में चला जाना विपक्ष के लिए एक बड़ा झटका है। वो भी ऐसे वक्त में जब विपक्ष 2019 में पीएम मोदी को चुनौती देने के लिए राष्ट्रीय महागठबंधन की कवायद कर रहा था। बिहार जैसे बड़े राज्य में कांग्रेस सत्ता की साझेदार थी। 2019 के लिए बिहार को मॉडल बनाने की बात हो रही थी। पिछले हफ्ते नीतीश कुमार राहुल गांधी से दिल्ली में आकर मिले औऱ तब भी महागठबंधन बच नहीं सका। इससे राहुल गांधी की सियासत पर सवाल खड़े होने शुरू हो जाएंगे।
राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में भी कांग्रेस ने उम्मीदवार उतारा लेकिन बिहार में तब कांग्रेस के सहयोगी रहे नीतीश कुमार ने राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार को समर्थन दे दिया। इसके लिए कांग्रेस के रणनीतिकार और राहुल गांधी ने क्या कोई पहल की ताकि महागठबंधन को बचाया जा सके। जिस राष्ट्रीय महागठबंधन के फॉर्मूले के साथ 2019 में मोदी को चुनौती देने की विपक्ष की योजना थी उसका मॉडल ही बिहार में फेल हो गया। अब कांग्रेस और तमाम विपक्षी दलों को फिर से नई नीति के साथ सामने आना पड़ेगा।