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छुट्टी के लिए बच्चों की चढ़ रही है बलि……क्या है वजह????

mara 1 छुट्टी के लिए बच्चों की चढ़ रही है बलि......क्या है वजह????

नई दिल्ली। बच्चे मन के सच्चे……बच्चों को मन का सच्चा कहा जाता है।वो चाहे जितनी मर्जी मस्ती कर लें ,लेकिन उनकी शैतानी इतनी बड़ी नहीं हो सकती कि उन्हें जान से मार दिया जाए। क्या ऐसा सोचा जा सकता है कि छोट-छोटे मासूम बच्चे जो स्कूल में पढ़ने जा रहें हैं उन्हें बेवजह मौत का सामना करना पड़ेगा।

पिछले साल जब रेयान इंटरनेशनल स्कूल में प्रद्युम्न की मौत की खबर सामने आई तो सन्नाटा पसर गया। दूसरी क्लास में पढ़ने वाला प्रद्युम्न किसी से क्या दूश्मनी रख सकता है कि उसकी हत्या कर दी जाए। पहले तो कंडेक्टर के ऊपर आरोप लगे उसने जुर्म कबूल कर लिया, लेकिन प्रद्युम्न के पिता को अंदेशा था कि सच्चाई कुछ और है।

 

mara 1 छुट्टी के लिए बच्चों की चढ़ रही है बलि......क्या है वजह????

सीबीआई जांच हुई तो सच सामने आया और वो सच था कि उसकी हत्या 11 वीं में पढ़ने वाले एक छात्र ने की थी।अभी इस बात को पचाना ही मुश्किल था कि ऐसी ही एक घटना लखनऊ के एक स्कूल में घट गई। हाल ही में लखनऊ के एक स्कूल में 6 साल के बच्चे को सातवीं में पढ़ने वाली छात्रा ने इसलिए चाकू से हमला कर दिया ताकी स्कूल की छुट्टी हो जाए।गनीमत रही की ये बच्चा बच गया और उसने खुद पुलिस को सारी बात बताई।

इस घटना पर पुलिस अपनी नजर बनाए हुए है वहीं योगी भी बच्चे से मिलने अस्पताल पहुंचे हुए हैं। इन सारी घटनाओं पर सबसे ज्यादा गौर करने वाली चीज कुछ और ही है। सबसे पहले तो ये कि क्या बच्चे इस तरह की भयावह कृत को अंजाम दे सकते हैं। जिस बेरहमी से प्रद्युम्न की हत्या हुी या इस बच्चे पर हमला हुआ इन घटनाओं को अंजाम देने वाला कोई पेशावर मुजरिम नहीं था।

इन घटनाओं को अंजाम दिया गया उसी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों ने। वो बच्चे जो उम्र थोड़े बड़े तो है, लेकिन इन्हें भी मासूम समझा जाता है। सवाल ये उठता है कि उनके अंदर इतनी नफरत या हिम्मत या चालाकी आई कहां से जो वो इतना बड़ा काम कर सके। दूसरी बात ये की स्कूल को घर के बाद सबसे सुरक्षित जगह माना जाता है वहीं पर दो बच्चों पर हमला होता है और घंटों तक स्कूल प्रशासन कुछ समझ ही नहीं पाता है।

ये जो इस तरह की घटनाएं सामने आ रहीं हैं वो सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि क्या ऐसी कमी रह जा रही हो जो बच्चे ऐसी मानसिकता का शिकार हो रहें हैं। क्यों बच्चों में समाज और कानून और परिवार का डर नहीं है।डर से ज्यादा इंसानियत नहीं है। इसका इलाज सिर्फ पुलिस को नहीं बल्कि परिवार को भी करना होगा। लोगों को अपने बच्चों से बात-चीत करनी होगी जिससे वो जान सकें कि उनके बच्चों के दिमाग में क्या चल रहा है।साथ ही कानून इतना सख्त होना चाहिए की बच्चों के मन में भी डर बन सके।

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