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चंद्रशेखर आजाद ने ओरछा के जंगल में गुजारे थे डेढ़ साल

AZAD चंद्रशेखर आजाद ने ओरछा के जंगल में गुजारे थे डेढ़ साल

भोपाल। चंद्रशेखर आजाद की जन्मस्थली मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के भाबरा में है। यहीं पर टीकमगढ़ जिले के ओरछा में आजाद ने लगभग डेढ़ वर्ष सन्यासी के तौर पर अज्ञातवास में गुजरा था।

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ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, उत्तर प्रदेश के काकोरी में राम प्रसाद बिस्मिल की अगुवाई में हुए ‘काकोरी कांड’ में आजाद उनके साथ थे। तब सहारनपुर-लखनऊ सवारी गाड़ी से अंग्रेज सरकार का खजाना लूट लिया गया था। इस घटना के बाद आजाद झांसी आ गए। उसके बाद उन्होंने अपना रुख ओरछा के सातार नदी के किनारे के जंगल की ओर किया। यह क्षेत्र मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले में आता है।

तथ्यों के अनुसार, सातार नदी के तट पर बने आजाद स्मारक में दर्ज विवरण इस बात की गवाही देते हैं कि आजाद यहां सन्यासी बनकर रहे थे। उन्हें चंद्रशेखर से हरिशंकर छद्म नाम स्वतंत्रता सेनानी रुद्रनारायण सिंह ने दिया। आजाद यहां लगभग डेढ़ वर्ष तक रहे। यहां उन्हें कोई पहचान नहीं पाया और वह यहीं रहकर आजादी के अपने मिशन को अंजाम देते रहे।

आजाद के समय की स्मृतियां तो बची हैं, मगर वे ज्यादा दिन अपने अस्तित्व में रह पाएंगी, इसमें हर किसी को संदेह है। आजाद ने यहां पर एक कुंइयां (छोटा कुंआ) खोदा था, जो आज भी है। इसी के साथ उन्होंने एक हनुमान मंदिर स्थापित किया और कुटिया बनाई।

स्मारक में उपलब्ध दस्तावेज बताते हैं कि आजाद का नजदीक के गांव ढिमरपुरा के मलखान सिंह ठाकुर के घर पर आना-जाना रहता था। इस गांव का नाम अब आजादपुरा है। मलखान सिंह की पहचान पंजा लड़ाने वाले पहलवान की थी, मगर वह पंजा लड़ाने में आजाद से हार गए तो उनकी क्षेत्र में अलग पहचान बन गई।

ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, सातार के जंगल में ही आजाद ने गुरिल्ला युद्घ का अभ्यास किया और साथियों को भी प्रशिक्षण दिया। वह शिकार के बहाने हथियार चलाने का अभ्यास किया करते थे। आजाद जिस कुटिया में सोते थे वह मिट्टी की है, मिट्टी का चबूतरा उनकी चारपाई थी, तो तकिया भी मिट्टी का ही था। कुटिया का कुछ हिस्सा ही बचा है। अब वह खंडहर में बदल चली है। आजाद ने यहां बच्चों को पढ़ाने का भी काम किया था।

नगर पंचायत ओरछा की अध्यक्ष राजकुमारी यादव बताती हैं, “सातार नदी तट पर जहां आजाद ने अज्ञातवास काटा था, वहां स्मारक बन गया है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस स्मारक का लोकार्पण 31 मई, 1984 को किया था। यहां आजाद की जयंती और पुण्यतिथि के मौके पर कार्यक्रम आयोजित कर उन्हें याद किया जाता है।”

आजाद के अज्ञातवास स्थल पर मौजूद स्मारक भवन में आजाद और आजादी से जुड़ी किताबें उपलब्ध हैं। आजाद की आदमकद प्रतिमा भी है। इस इलाके में पत्थर और मिट्टी की गुफाएं भी हैं। इन दोनों गुफाओं में आजाद रहा करते थे। पत्थर की गुफा तो यथावत है, मगर मिट्टी की गुफा ढह रही है।

यादव कहती हैं, “जिस स्थान पर आजाद ने अज्ञातवास गुजारा था, उसे पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित किया जाना चाहिए। यह संभव भी है, क्योंकि यह स्थान सातार नदी के तट पर है। नदी तट को विकसित किया जाए। इसके लिए राज्य सरकार के नगर प्रशासन विभाग को एक प्रस्ताव भेजा गया है।”

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