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भारत के लिए पाकिस्तान नहीं चीन है चुनौती

Indo China Flag भारत के लिए पाकिस्तान नहीं चीन है चुनौती

भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर के उड़ी हमले के बाद उभरे तनाव के बीच चीन गिरगिट की भूमिका में दिख रहा है। उसने भारत और बंग्लादेश के सामने चुनौती पेश करते हुए ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी का जल प्रतिबंधित करने के साथ आतंकी अजहर मसूद पर संयुक्त राष्ट्र में एक बार फिर वीटो का प्रयोग किया है। उसकी इस कुटिल चाल से यह साबित हो गया है कि चीन भारत के खिलाफ पाकिस्तान के साथ खड़ा है। अमेरिकी सीनेट में पाकिस्तान को आतंकी देश घोषित करने के लिए लाए गए प्रस्ताव के बाद चीन भारत और अमेरिका के मध्य बढ़ते संबंधों को लेकर जलभुन गया है। दोनों फैसलों के जरिए उसने भारत को सीधे तौर पर ललकारा है।

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बदले हालात में हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती पाकिस्तान नहीं बल्कि चीन है। चीन से हमें कैसे निपटना है यह हमारे लिए चुनौती है। क्योंकि भारत के खिलाफ पाकिस्तान के साथ मिलकर कूटनीतिक स्तर पर वह अपनी साजिश रच रहा है। भारत की आड़ में वह अमेरिका को भी अपनी भाषा में संदेश देना चाहता है। जिसका साफ मतलब है कि अगर अमेरिका भारत के साथ खड़ा है तो हम पाकिस्तान के साथ हर स्थिति में उसके साथ होंगे।

अमेरिका से बढ़ती भारत की नजदीकी और दक्षिण सागर पर भारत, अमेरिका के साथ जापान की एकजुटता को देख चीन बौखला गया है, जिसकी वजह है कि वह दक्षिण एशिया में अलग-थलग न पड़ जाए। इसके लिए पाकिस्तान और नेपाल से कूटनीतिक और आर्थिक संबंध बनाकर भारत को घेरने के लिए इन देशों को विश्वास में ले रहा है। बावजूद इसके भारत की कूटनीति को उसने खूंटी पर टांग दिया है।

देश की सत्ता की बागडोर संभालने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शक्तिशाली पड़ोसी चीन और पाकिस्तान से कूटनीतिक संबंधों के जरिए तनाव को कम करने और एक पड़ोसी के नाते अच्छे संबंध बनाने की पहल की थी, लेकिन उनकी वह नीति काम नहीं आई। दोनों ने इस विश्वास को तोड़ा। वह चाहे इस्लामाबाद रहा हो या बीजिंग।

आखिरकार पाकिस्तान और चीन ने यह साबित कर दिया है कि दुश्मन तो दुश्मन ही होता है। उससे दोस्ती बड़ी भूल है। दूसरी तरफ भारत और जापान के संबंधों के बदलते समीकरण दक्षिण एशिया में चीन की चिंता का अहम कारण हैं। मसूद पर वीटो का प्रयोग और ब्रह्मपुत्र के पानी पर प्रतिबंध इसके ताजा उदाहरण हैं। वह भारत के साथ बंग्लादेश को भी चुनौती दे रहा है। क्योंकि वह पानी बंग्लादेश को भी जाता है। ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी के पानी का उपयोग भारत और बंग्लादेश की लाखों की आबादी करती है, जिससे दोनों देशों के सामने यह बड़ी चुनौती हो सकती है।

हलांकि उसने अपनी पनबिजली परियोजना और बाढ़ नियंत्रण का बहाना लिया है, लेकिन यह अंतर्राष्ट्रीय नियमों और समझौतों के खिलाफ है। इस तरह किसी देश के जलापूर्ति को प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है। लेकिन इसकी आड़ में वह भारत को नीचा दिखाने की कोशिश कर रहा है। उसका साफ संदेश है कि हम किसी भी स्थिति में पाकिस्तान के साथ हैं।

भारत अमेरिकी सहायता का बेजा इस्तेमाल कर पाकिस्तान पर हमला किया तो खुले तौर पर वह पाकिस्तान खेमे में होगा। चीन की तरफ से यह चुनौती तब दी गई है जब भारत सिंधुजल समझौते पर पुनर्विचार कर रहा है। हलांकि अभी सिंधुजल को प्रतिबंधित नहीं किया गया है और न ही इतनी जल्दी उसे प्रतिबंधित किया जा सकता है। क्योंकि जलसंरक्षण के विकल्पों के बगैर सिर्फ बयानबाजी से उसे नहीं रोका जा सकता है।

भारत सरकार पाकिस्तान पर आतंकवाद के पोषण पर मनोवैज्ञानिक दबाब बनाने के लिए इस तरह का ऐलान किया है, लेकिन उसके पहले चीन ने ब्रह्मपुत्र के जल को प्रतिबंधित कर भारत को साफ-साफ संदेश दिया है कि वह हर स्थिति में पाकिस्तान के साथ है। यह प्रतिबंध तब लगाया गया है जब भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में कोई मिठास नहीं है। दोनों देश युद्ध की स्थितियों में पहुंच गए हैं।

अमेरिकी रक्षामंत्री हिलेरी क्लिटंन ने यहां तक कह दिया की पाकिस्तान में आतंकियों के जरिए तख्ता पलट हो सकता है उस स्थिति में परमाणु अस्त्र अगर आतंकियों के हाथ लग गए तो क्या होगा। अमेरिका की यह चिंता मानव और विश्व समुदाय के लिए वास्तव में चिंता का सवाल है। लेकिन पाकिस्तान आए दिन भारत पर परमाणु हमले की धमकी देने से बाज नहीं आता है। कहीं यह जुबानी कल्पना आतंकियों के हाथ लग गई तो क्या होगा।

उस स्थिति में दुनिया क्या एक और आणविक युद्ध की जंग में तबाह हो जाएगी। चीन और अमेरिका के मध्य उलझे भारत की सबसे बड़ी चिंता चीन और उसकी रणनीति से निपटना है। सवाल यह है कि जब पूरी दुनिया आतंक से जूझ रही है उस स्थिति में चीन पाकिस्तान की पनाह में पल रहे आतंकी अजहर मसूद की पैरवी क्यों कर रहा है। उसे अजहर मसूद से इतनी दिलचस्पी क्यों है। वह आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद को खाद-पानी क्यों दे रहा है। इसकी वजह क्या है।

मसूद पर वीटो का प्रयोग साफ करता है कि चीन आतंक और आतंकवाद का समर्थन नहीं करता है। वह सिर्फ भारत और अमेरिका को अपनी कूटनीतिक चुनौती पेश कर रहा है। उसका मकसद सिर्फ पाकिस्तान के समर्थन में अपनी कूटनीति को सफल कर दोनों देशों की दोस्ती को आइना दिखाना चाहता है। वह भारत को यह संदेश देना चाहता है कि अमेरिका से दूरिया बना कर रखे।

अगर चीन दोबारा वीटो का प्रयोग न किया होता तो संयुक्त राष्ट्र संघ में मसूद को आतंकी घोषित करने का रास्ता साफ हो जाता। क्योंकि चीन भी 1999 में गठित सुरक्षा परिषद की 1267 समिति की सूची का समर्थन कर चुका था। सोमवार को यह अवधि खत्म हो रही थी। लेकिन भारत और पाकिस्तान के बदलते हालत का कूटनीतिक लाभ उठाते हुए चीन ने दांव पलट दिया और भारत के हाथ लगती बाजी एक बार फिर फिसल गई। इस प्रतिबंध के बाद उसकी संपत्ति फ्रीज हो जाती।

बाहरी यात्रा पर भी प्रतिबंध लग जाता आतंकी उपयोग के लिए खरीदे जाने वाले हथियारों और दूसरी सुविधाओं का लाभ भी वह नहीं उठा पाता। लेकिन चीन की दरियादिली जिस तरह आतंक और उसकी नीति को खाद-पानी दे रही है वह भविष्य के लिए ठीक नहीं है। पूरी दुनिया यह जान रही है कि आतंकी अजहर मसूद पाकिस्तान की गोद में पाल रहा है, लेकिन कोई चुप्पी नहीं तोड़ रहा है। बस अपना मकसद कामयाब करने के लिए भारत के खिलाफ कूटनीतिक साजिशें रची जा रही हैं।

मसूद वही आतंकवादी है, जिसे भारत ने पकड़ा था। लेकिन 1999 में अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार में अपहृत इंडियन एयरलाइंस के विमान के यात्रियों को सुरक्षित बचाने के लिए आतंकियों ने मसूद की रिहाई की शर्त रखी थी। जिसके बाद उसे रिहा कर दिया गया था।

सवाल यह उठता है कि इसी तरह का प्रतिबंध अमेरिका पर ओसामा बिन लादेन के लिए भी लाया गया था फिर चीन ने उस स्थिति में वीटो का प्रयोग क्यों नहीं किया। बदली हुई परिस्थितियों में वह भारत को नीचा दिखाने की कोशिश और साजिश रच रहा है, जिसका भारत को मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए। वैश्विकमंच पर भारत को ठोस कूटनीतिक कदम उठाने होंगे, जिससे चीन को मात दी जाए। इसके पीछे दूसरी मुख्य वजह भारत विश्व बाजार में उभरता नया चेहरा है।

भारत की आर्थिक प्रगति से चीन डर गया है, जिसकी वजह कूटनीतिक स्तर पर वह भारत को नीचा दिखाने और एक के बाद एक नई चुनौती पेश करना चाहता है। लेकिन भारत उसकी कोई साजिश कामयाब नहीं होने देगा।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। ये लेखक के निजी विचार हैं।)

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