शख्सियत

सुशासन, साहस और सम्मान का नाम अटल

atal bihari 1 सुशासन, साहस और सम्मान का नाम अटल

भारत रत्न से सम्मानित पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का आज जन्मदिन है। अटल बिहारी वाजपेयी ने ना सिर्फ एक अच्छे कवि थे, राजनेता से ज्यादा एक बेहतर इंसान के रूप में देश की जनता के सामने छवि बनाई। अटल जी ने एक वक्ता के रूप में उभर कर देश की जनता के दिलों में घर बनाया।

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नेहरू भी थे अटल से प्रभावित

यह बात बहुत की कम लोग जानते हैं कि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी वाजपेयी की हिंदी के प्रभावित थे। जब कभी सदन में नेहरू कोई सवाल वाजपेयी से पूछते थे तो वो जवाब हिन्दी भाषा में ही देते थे। एक बार की बात है जब नेहरू ने सदन में जनसंघ की आलोचना की तो अटल ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, मैंने सुना था कि नेहरु जी रोजाना शीर्षासन करते हैं। वह शीर्षासन करें, मुझे कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन मेरी पार्टी की तस्वीर उलटी ना देखें।’ अटल की इतनी सी बात पर पूरा सदन तो भौचक्का हुआ ही, खुद नेहरू जी ठहाके लगाकर हंस दिए।

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हिंदू राष्ट्र तो सो रहा है….

1991 में लखनऊ में चुनाव प्रचार चल रहा था। कलराज मिश्र बीजेपी यूपी के अध्यक्ष थे, वह वाजपेयी से मिलने आए, कलराज मिलने आए तो वाजपेयी उस समय चुनाव प्रचार के लिए रण में गए हुए थे। जब वाजपेयी वापस लौटे तो कालराज एसी की हवा में आराम फरामा रहे थे, तब वाजपेयी ने कटाक्ष करते हुए कहा कि ‘लो, हिंदू राष्ट्र तो सो रहा है। कैसे काम चलेगा।’

भीड़ को चीरकर कार्यकर्ता को कराया चुप

बात उस वक्त की है जब साल 1990 में पूरे देश में अयोध्या के राम मंदिर को लेकर विवाद और आंदोलन चरम सीमा पर था। भोपाल के ग्वालियर से कारसेवकों का एक समूह झांसी के लिए रवाना हुआ तो उन्हें सूचना मिली की जिस ट्रेन से वाजपेयी सफर करने वाले है वो ग्वालियर स्टेशन पर रूकेगी।

ग्वालियर स्टेशन पर जैसे ही ट्रेन रूकी और वाजपेयी बाहर आए कार्यकर्ताओं ने अटल बिहारी जिंदाबाद’। फिर ‘रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे। खून की होली खेलेंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’ के नारे लगाना शुरू कर दिया। जैसे ही ये नारे वाजपेयी के कान में पड़े उन्होंने भीड़ को चीरते हुए कार्यकर्ता के मुंह पर हाथ रखकर चुप करा दिया। कार्यकर्ता को चुप कराते हुए अटल ने कहा कि वो राष्ट्रीय आंदोलन को कट्टरता के उन्माद से कलंकित नहीं होना देना चाहते हैं।

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सदा-ई-सरहद बस सेवा

यह बात शायद किसी को पता हो कि दिल्ली से लाहौर तक चलने वाली बस सेवा का अपना भारत और पाकिस्तान नहीं बल्कि न्यूयॉर्क की धरती से देखा गया था। साल 1998 में 23सितंबर के दिन न्यूयॉर्क में जनरल असेंबली की मीटिंग चल रही थी। इस मीटिंग में भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और कई नेता मौजूद थे। लंच के दौरान दोनों नेताओं ने गुफ्तगू करते हुए पुराने दिनों को याद किया ।

शरीफ ने कहा कि अटल जब पंजाब सरकार में मंत्री थे तब वो एशियन खेलों को देखने के लिए कार से दिल्ली आए थे और फिर आगरा गए थे। तब विदेश मंत्रालय के अफसर विवेक काटजू ने सुझाव देते हुए कहा कि थी लाहौर से दिल्ली तक एक बस सेवा शुरू की जानी चाहिए। तभी से दिल्ली और लाहौर के बीच बस सेवा शुरू हुई। यह बस आज भी दो सरहदों में बटे लोगों को मिलाने का काम कर रही है।

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