नई दिल्ली| रक्षा मंत्रालय ने रविवार को जोर देकर कहा कि अगले सेनाध्यक्ष के रूप में नामित लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत इस पद के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त हैं। रावत की नियुक्ति में सामान्यत: अनुसरण की जाने वाली वरिष्ठता की परंपरा की अनदेखी की गई है।
लेफ्टिनेंट जनरल रावत को सेनाध्यक्ष नियुक्त कर पूर्वी कमान के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल प्रवीन बक्शी और सेना की दक्षिणी कमान के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल पी.एम. हारिज की वरिष्ठता की अनदेखी की गई है। इन दोनों ने सेना में अधिक दिनों तक सेवाएं दी हैं ।गत सितम्बर महीने में जब उप सेनाध्यक्ष का पद खाली हुआ था तब भी लेफ्टिनेंट जनरल बक्शी को उक्त पर नियुक्त नहीं किया गया था और लेफ्टिनेंट जनरल रावत को दक्षिणी कमान से लाया गया था।
मंत्रालय में एक सूत्र ने कहा, “उत्तर में सैन्य बल के पुनर्गठन, पश्चिम से लगातार जारी आतंकवाद और छद्म युद्ध तथा पूर्वोत्तर में स्थिति समेत उभरती चुनौतियों से निपटने के लिए वह (रावत) लेफ्टिनेंट जनरलों में सबसे उपयुक्त पाए गए।”
रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर से शुक्रवार को पूछा गया था कि क्या उत्तराधिकार के क्रम तोड़े जाएंगे? इस पर उन्होंने रहस्यमयी ढंग से कहा, “उत्तराधिकार के क्रम का फैसला लोगों द्वारा किया जाता है।लेफ्टिनेंट जनरल रावत ने देहरादून स्थित भारतीय रक्षा अकादमी से दिसंबर, 1978 में 11 गोरखा राइफल के पांचवें बटालियन में कमीशन प्राप्त किया था। उन्हें ‘सोर्ड ऑफ ऑनर’ से सम्मानित किया गया था।वह वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर इन्फैंट्री बटालियन की कमान, राष्ट्रीय राइफल्स सेक्टर और कश्मीर घाटी में एक इंफैंट्री डिविजन का नेतृत्व कर चुके हैं।रावत के पास उंचाई पर होने वाले युद्ध और विद्रोह रोधी अभियानों का लंबा अनुभव है।
सूत्र ने कहा, “उन्होंने पाकिस्तान के साथ नियंत्रण रेखा (एलओसी), चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के आसपास और पूर्वोत्तर में विभिन्न अभियानों का दायित्व संभाला है।सेनाध्यक्ष की नियुक्ति के तुरंत बाद कांग्रेस ने सरकार द्वारा वरिष्ठताक्रम की अनदेखी पर सवाल खड़े किए।सेनाध्यक्ष दलबीर सिंह सुहाग और वायु सेना प्रमुख अरुप राहा के अवकाश प्राप्त करने से 13 दिन पहले रक्षा मंत्रालय ने शनिवार की रात अगले सेनाध्यक्ष और अगले वायु सेना प्रमुख के नामों की घोषणा की।