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पूर्वांचल में किसकी साख लगी है दांव पर

yogi modi akhilesh पूर्वांचल में किसकी साख लगी है दांव पर

उत्तर प्रदेश का सियासी रण अब अपने आखिरी चरण में आ गया है। आखिरी दो चरणों में राजनेताओं की निगाहें पूर्वांचल पर टिंकी हुई है। पूर्वांचल का गढ़ ही तय करेगा कि आखिरकार प्रदेश की सत्ता पर कौन काबिज होगा। पूर्वांचल के अखाड़ें में राजनेता खुद तो चुनाव प्रचार कर ही रहे हैं साथ ही अपने संबंधियों को भी बुला रहे हैं। मुलायम के संबंधी लालू यादव यूं तो बिहार की राजनीति से सरोकार रखते हैं लेकिन इन दिनों यूपी में सपा के लिए प्रचार कर रहे हैं। लालू के साथ तेजस्वी यादव भी यूपी के दंगल में सपा के प्रचार की कमान अपने हाथों में ले चुके हैं।

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वाराणसी के घाट बनें भाजपा की आस

पूर्वांचल में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं वाराणसी की सीट क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी का संसदीय क्षेत्र होने के कारण भाजपा के राजनेता इस सीट पर अपनी जीत दर्ज कर गंगा की गोद में परचम लहराने की ताक में हैं। बनारस के घाट से भाजपा के नेताओं को काफी आस है।

बीजेपी के लिए प्रतिष्ठित सीट वाराणसी दक्षिण से सबसे ज्यादा मुश्किल है। इसी सीट के दायरे में काशी विश्वनाथ की गलियां, मंदिर, मस्जिद, गदौलिया चौक, 41 घाट और बनारसी साड़ी के बुनकर रहते हैं। पिछले विधानसभा चुनावों के समीकरणों पर नजर डालें तो यहां पर श्यामदेव राय चौधरी का दबदबा माना जाता हैं जो इस सीट पर पिछले 9 चुनावों से जीत का झंडा फहरा रहे थे लेकिन इस बार पार्टी ने उनका टिकट काट दिया है।

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आजमगढ़ सपा की शान

वाराणसी के घाट भाजपा के लिए शान मानें जा हैं तो आजमगढ़ के लिए सपा एड़ी-चोटी का दम लगाने में लगी हुई है। आजमगढ़ की सीट जीतना सपा के लिए आन, बान और शान की बात है क्योंकि यह जगह समाजवादी पार्टी के मार्ग दर्शक मुलायम सिंह यादव का गढ़ मानी जाती है इस सीट को जीतने के लिए अखिलेश   ने खुद रणनीति बनाई है। अखिलेश ने रणनीति के तहत अपने सबसे ज्यादा भरोसेमंद शख्स और बदायूं से सांसद धर्मेंद्र यादव को आजमग़ढ़ की सीट बचाने की कमान सौंपी है।

पिछले चुनावों की बात की जाए तो आजमगढ़ की 10 में से 9 सीटें सपा के हाथों में आई थी सिर्फ मुबारकपुर सीट पर सपा को शिकस्त का सामना करना पड़ा था, लेकिन इन चुनावों में सपा एक भी सीट गंवाना नहीं चाहती।

सपा ने पिछली बार 9 हजार वोटों से हारने वाले अखिलेश यादव को ही टिकट दिया है। इसके अलावा टीम अखिलेश के कई नेता आजमगढ़ में छोटी-छोटी जनसभाएं करके सियासी रण में तड़का लगाने का काम कर रहे हैं। धर्मेंद्र यादव, अखिलेश के कामों के कसीदें पढ़ रहें हैं ताकि जनता को लुभा सकें।

akhliesh yadav 2 पूर्वांचल में किसकी साख लगी है दांव पर

आजमगढ़ तो अपना है

आजमगढ़ सीट को लेकर अखिलेश इतना आश्वस्त है कि वो रैली के दौरान दावा कर चुके हैं कि इस बार भी आजमगढ़ की जनता सपा को ही ताज पहनाएगी।

 यादव+मुस्लिम+क्षत्रिय का समीकरण

 आजमगढ़ में समाजवादी पार्टी ने यादव+मुस्लिम और क्षत्रिय जातिय़ों को आधार मानकर रणनीति बनाई है। आजमगढ़ की 10 सीटों में से 3 यादव, 3 मुस्लिम और 2 क्षत्रिय और 2 दलित उम्मीदवारों को टिकट दिया गया है। आजमगढ़ में अगर देखें तो करीब 18 फीसदी यादव और 18 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं। जबकि क्षत्रिय वोटर भी 10 फीसदी के आस पास है। इसके अलावा 26 फीसदी दलित वोटर हैं। अखिलेश यादव ने पिछली बार इसी समीकरण पर आजमगढ़ की 9 सीटों पर परचम लहराया था और इस बार पार्टी को लगता है कि पिछले चुनावों की तरह इस बार भी यह समीकरण स्टीक बैठेगा।

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गोरखपुर में योगी की इज्जत लगी दांव पर

भाजपा के फायर ब्रांड नेता योगी आदित्यनाथ का गढ़ मानें जाने वाले गोरखपुर में भी छठे चरण में मतदान होना है। इस सीट पर भाजपा की साख तो दांव पर है ही साथ ही योगी की क्षेत्र में पकड़ का भी पता चलना है। य़ोगी पहले की भाजपा की जीत के बाद मुख्यमंत्री बनने की इच्छा जाहिर की है। योगी टिकट बंटवारे में गोरखपुर विधानसभा सीट पर पहले ही अपना दबदबा दिखा चुके हैं। भाजपा ने योगी की पसंद को ध्यान में रखते हुए गोरखपुर ग्रामीण विधानसभा सीट से विपिन सिंह, चिल्लूपार से राजेश त्रिपाठी और बांसगांव से बीजेपी सांसद कमलेश पासवान के भाई विमलेश पासवान को मैदान में उतारा हैं। वहीं, कैंपियरगंज से फतेह बहादुर सिंह को टिकट दिया गया है।

पूर्वांचल की समस्याएं

पूर्वांचल यूपी को वो भू-भाग है जो काफी पिछड़ा हुआ माना जाता है, इसकी वजह जाति मार्गदर्शित राजनीति, विशाल भू-भाग व विशाल जनसंख्या है। पूर्वांचल के प्रमुख मुद्दों में – नागरिक बुनियादी सुविधाओं की कमी, उचित ग्रामीण शिक्षा और रोजगार का अभाव है। वर्तमान में यह जगह गुंडागर्दी और गरीबी के लिए जानी जाती है।

आपको यह बात जानकर थोड़ी हैरानी होगी कि सोनभद्र पूर्वांचल का ही एक जिला है जो 7000 मेगा किलोवाट बिजली का उत्पादन करता है। यानि कुल मिलाकर देखा जाए तो यूपी में जितनी बिजली की खपत है उसका आधा तो सिर्फ सोनभद्र में ही उत्पादित हो जाता है। वहीं, दूसरी तरफ वाराणसी के बुनकरों से साड़ियां खरदीने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं। बनारसी साड़ियों का भी भारत के परिधानों में एक अलग स्थान है। इसके बाबजूद बुनकरों की समस्याएं कम नहीं हो रही है, दिनों-दिन स्थिति खराब ही होती जा रही है। दुनिया 4जी तक पहुंच गई है लेकिन बुनकरों के पास ऐसा कोई प्लेटफॉर्म नहीं है जिससे वो अपनी कला को दिखा सकें। समस्याएं कई हैं, समस्याओं का निदान भी है लेकिन राजनेताओं को यह जगहें सिर्फ चुनावों के समय ही याद आती है।

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव सात चरणों में हो रहे हैं। इसमें पांच चरण के मतदान अब तक सम्पन्न हो चुके हैं। छठे चरण में आजमगढ़ और गोरखपुर मंडल के सात जिलों की 49 विधानसभा क्षेत्रों में 4 मार्च को और सातवें व अंतिम चरण में वाराणसी और मीरजापुर मंडल के सात जिलों की 40 विधानसभा क्षेत्रों में 8 मार्च को मतदान होना है। अब इसे यूपी की किस्मत कहें या फिर राजनेताओं का बोलबाला यहां पर हर 4 कदम की दूरी पर या तो किसी बाहुबली का दबदबा है या तो किसी राजनेता का अब सियासी रण में कौन बाजी मारेगा इसका पता तो 11 मार्च को ही चलेगा।

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