नई दिल्ली। जमाना तो रफ्तार का है हजारों अलग तरह की गाड़िया और बग्घी है लेकिन राष्ट्रपति के बग्घी की बात ही अलग होती है क्योकि उनकी शाही सवारी जो होती है इस बग्घी में जितना सोना लगा है उससे मंहगी से मंहगी कार खरीदी जा सकती है राष्ट्रपति की ये शाही बग्घी इतिहास को खुद आजादी के बाद भारत और पाकिस्तान दोनों ने बग्घी पर दावा किया था जिसका फैसला टॉस करके किया गया।
आजादी से पहले वायसराय और आजादी के बाद के कई साल तक देश के राष्ट्रपति इस शाही बग्घी की सवारी करते आए है इस फेहरिस्त में देश के पहले राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद से लेकर प्रणब मुखर्जी तक का नाम इसमें शामिल है भारत में संविधान लागू होने के बाद 1950 में हुए गणतंत्र दिवस समारोह में देश के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद बग्घी पर ही सवार होकर गणतंत्र दिवस समारोह में पहुंचे थे।
बता दें कि आजादी के वक्त जब भारत दो टुकड़ो में बंट गया तो इस शाही बग्घी को लेकर काफी विवाद हुआ भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों ने इस बग्घी को लेकर काफी विवाद हुआ दोनों देशों ने इस बग्घी पर अपना दावा किया ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये था कि आखिर ये शाही बग्घी किसे दिया जाए लिहाजा इसके लिए एक नायाब तरीका ढूंढा गया।
वायसराय की अंगरक्षक टुकड़ी के तत्कालीन हिन्दू कमांडेंट और मुस्लिम डिप्टी कमांडेंट के बीच सिक्का उछालकर टॉस किया गया टॉस में भारत की जीत हुई और ये बग्घी हमेशा हमेशा के लिए भारती की हो गई।
राष्ट्रपति की ये शाही सवारी बेहद ही खास है सोने से सजी धजी इस बग्घी के दोनों ओर भारत का राष्ट्रीय चिन्ह सोने से अंकित है इसे खीचने के लिए 6 घोड़ों का इस्तेमाल किया जाता है ये घोड़े विशेष नस्ल के होते है इसके लिए खास तौर से भारतीय और ऑस्ट्रेलियाई मिक्स ब्रीड के घोड़ो का इस्तेमाल किया जाता है आजादी के बाद 1950 से लगातार 1984 तक सरकारी कार्यक्रमों में बग्घी का इस्तेमाल होता था बाद में इसे रोक दिया गया लेकिन 2012 में प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति बनने के बाद इस पंरपरा को फिस से शुरु कर दिया गया।