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जानिए: आजादी के बाद भारत के प्रमुख युद्धों के बारे में

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नई दिल्ली। भारत को आजादी पाने के लिए कई मुसीबतों का सामना करना पड़ा था। देश को आजाद कराने के लिए की जवानों की वलि देनी पड़ी थी। इतना ही नहीं आजादी के बाद भी भारत को चैन की सांस नहीं लेने दिया गया। आजादी के बाद भी भारत ने कई बड़ी लड़ाईयां लड़ी और पाकिस्तान और चीन जैसे देशों से भारत को बचाने के लिए उनके साथ कई युद्ध किए। भारत ने पाक के साथ 4 बड़े युद्ध लड़ने पड़े। भारत को चीन के साथ भी दो बड़े युद्ध लड़ने पड़े। जिसमें भारत को एक बार चीन से हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन उसका बदला भारत ने चीन से अगले युद्ध में चीन से सूत समेत वापस ले लिया।

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1947 का युद्ध भारत-पाक के बीच

नई दिल्ली। भारत और पाकिस्तान के बीच सन 1947 में होने वाला युद्ध बहुत ही मशहूर युद्ध है। भारत पाक के बीच होने वाला ये पहला युद्ध था जो सन 1946 से 1947 तक चला। ये युद्ध कश्मीर को लेकर हुआ था। 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान ने लाखों लोगों के खूनसे अपने इतिहात का पहला पन्ना लिखा। अभी वो खून सूखी भी नहीं था कि पाक ने भारत पर 22 अक्टूबर 1947 में दोबारा हमला कर दिया। पाकिस्तान का कहना है कि भारत पर हमला करने वाली सेना पाक सेना नहीं बल्कि कबाइली थे लेकिन सच क्या है ये सब जानते हैं। कबाइलियों के भेस में पाक सेना ने भारत पर हमला किया और उत्तर पश्चिमी सीमा प्रदेश से 5000 से ज्यादा सेनिक कबाइली के भेस में 22 अक्तूबर, 1947 को अचानक कश्मीर में घुस आए। भले ही उनके शरीर पर वर्दी न हो लेकिन उनके हाथ में बंदीके और मशीनगनें और मोर्टार सब कुछ बयान कर रहे थे। पाक ने पहला हमला सीमांत स्थित नगरों दोमल और मुजफ्फराबाद पर किया।

इसके बाद गिलगित, स्कार्दू, हाजीपीर दर्रा, पुंछ, राजौरी, झांगर, छम्ब और पीरपंजाल की पहाड़ियों पर कबाइलियों के रूप में पाकिस्तानी हमला हुआ। उनका इरादा था कि वो इन रास्तों से अंदर आकर श्रीनगर पर कब्जा कर लें। इसी उद्देश्य से कश्मीर घाटी, गुरेज सेक्टर और टिटवाल पर भी हमला किया। इस अभियान को “आपरेशन गुलमर्ग’ नाम दिया गया। सबसे बड़ा हमला मुजफ्फराबाद की ओर से हुआ। यहां पर पुलिस के जवान कम थे और साथ ही पुंछ के लोग भी हमला करने वालों से मिल गए थे। मुजफ्फराबाद पूरी तरह से बर्बाद हो गया। वहां के नागरिक मारे गए, महिलाओं से बलात्कार किया गया। मुजफ्फराबाद को तबाह करने के बाद कबाइली और पाक सेना का अगला निशाना थे उड़ी और बारामूला। 23 अक्तूबर, 1947 को उड़ी में घमासान युद्ध हुआ। हमलावरों को रोकने के लिए ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह के नेतृत्व में वहां मौजूद सेना उड़ी में वह पुल ध्वस्त करने में कामयाब हुई, जिससे हमलावरों को गुजरना था। एक पठान की गोली लगने से ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह वहीं शहीद हो गए। लेकिन हमलावर आगे नहीं बढ़ पाए। खीझ मिटाने के लिए उन्होंने उसी क्षेत्र में जमकर लूटपाट की, महिलाओं से बलात्कार किया।

भारत की सेना ने दिया जवाब

कश्मीर के महाराज हरी सिंह इस हमले से खुद को अकेला महसूस कर रहे थे। 24 अक्तूबर को उन्होंने भारत से सैनिक सहायता की अपील की। उस समय लार्ड माउंटबेटन के नेतृत्व में सुरक्षा समिति ने इस अपील पर विचार किया और कश्मीर में सेना भेजने को राजी हो गई लेकिन हमारे राजनेताओं ने कहा कि कश्मीर के भारत में आधिकारिक विलय के बिना वहां सेना नहीं भेजी जा सकती। महाराजा तक यह बात पहुंची तो उन्होंने 26 अक्तूबर को भारत में विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए। उसके तुरंत बाद भारतीय सेना जम्मू-कश्मीर में कबाइलियों और पाक सेना का सामना करने के लिए विमान और सड़क मार्ग से पहुंच गई। बारामूला में कर्नल रंजीत राय के नेतृत्व में सिख बटालियन काफ़ी बहादुरी से लड़ी लेकिन बारामूला और पट्टन शहरों को नहीं बचा पाई। बारामूला में कर्नल राय शहीद हो गए बाद में उन्हें महावीर चक्र से अलंकृत किया गया। बारामूला में भारत के 109 जवान शहीद हुए और 369 घायल हुए। उधर श्रीनगर की वायुसेना पट्टी की ओर तेजी से बढ़ रहे हमलावरों को 4 कुमाऊं रेजीमेंट के मेजर सोमनाथ शर्मा के नेतृत्व में मात्र एक कम्पनी ने रोका। इसी कार्रवाई में मेजर शर्मा शहीद हुए और मरणोपरान्त उन्हें भारत का पहला परमवीर चक्र दिया गया।

युद्ध को रोकने की घोषणा की गई

साल 1947 में नवम्बर आते आते भारतीय सेना ने पाक सेना और कबाइलियों को वहा से वापस जाने पर मजबूर कर दिया और उनको वापस जाना पड़ा। लेकिन उसी दौरान पाक सेना उड़ी, टिटवाल और कश्मीर के कई इलाकों में युद्ध करने पहुंच गई और कारगिल मे पाक सेना ने धावा बोल दिया। इस हमले में भारत के सैनिक और टैंकों ने वो कमाल दिखाया जिसे आज तक याद किया जाता है। भारत के जवाब के बाद चार दिन में ही पाक सेना को भागना पड़ा। इस प्रकार भारतीय सेना ने कश्मीर बचाने का अपना प्राथमिक लक्ष्य हासिल कर लिया। लेकिन पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर के कुछ इलाकों पर कब्जा कर लिया। लेकिन हमारी सेना ने 14 सितम्बर 1948 को जोजिला की दुर्गम ऊंचाइयों पर विजय प्राप्त कर लेह को सुरक्षित बचा लिया। 1947-48 में 14 महीने चले इस युद्ध में हमारे देश के 1,500 सैनिक शहीद हुए, 3500 घायल हुए और 1000 लापता हुए। अधिकांश लापता युद्धबंदी के रूप में पाकिस्तान ले जाए गए। पाकिस्तान की ओर से अनुमानत: 20,000 लोग इससे प्रभावित हुए और 6000 मारे गए।

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