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जाने चिपको आंदोलन में खास भूमिका निभाने वाली बचनी देवी के बारे में

chipko movement

नई दिल्ली। चिपको आंदोलन की कहानी एक ऐसी कहानी है जिसे उत्तराखंड के चमोली से सन 1973 में शुरू किया गया था। इस आंदोलन को वृक्षों की कटाई को रोकने के लिए चलाया गया था। इस आंदोलन को भले ही पुरूष कार्यकर्ताओं के नाम से जाना जाता हो लेकिन इस आंदोलन में महिलाओं की भूमिका भी कुछ कम नहीं थी। इस आंदोलन के लिए गौरी देवी या सुदेशी बहन को ही लोग जानते हैं। लेकिन ये कोई नहीं जानता कि इस आंदोलन में एक महिला ऐसी भी सामिल थी जिसने अपनी पूरी ताकत इस आंदोलन में झोंक दी थी। जिन्हें अब तक कोई भी प्रर्याप्त पहचान या सम्मान नहीं मिल पाया है।

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बचनी देवी उन्हीं महिलाओं में से एक है जिन्होंने चिपको आंदोलन में सहयोग किया था। बचनी का जन्म अगस्त 1929 में पट्टी धार अक्रिया के कुरगोली गांव में हुआ था। उनकी शादी अदवाणी गांव निवासी बख्तावर सिंह के साथ हुई। 30 मई 1977 को जब चिपको नेता सुंदरलाल बहुगुणा, धूम सिंह नेगी और कुंवर प्रसून अदवाणी पहुंचे, तो वहां वन निगम के ठेकेदार पेड़ों पर आरियां चला रहे थे। बहुगुणा, नेगी और प्रसून के आह्वान पर बचनी देवी गांव की महिलाओं को साथ लेकर आंदोलन में कूद पड़ी। उन्होंने पेड़ों से चिपककर ठेकेदारों के हथियार छीन लिए और उन्हें वहां से भगा दिया। उस दौर में गांव के अधिकांश लोग पेड़ों के कटान के समर्थक थे।

बता दें कि बचनी देवी के पति बख्तावर सिंह खुद निगम के लीसा ठेकेदार थे। ऐसे में बचनी देवी ने साहस और सूझाबूझा से परिवार का विरोध भी झेला और आंदोलन में भी भागेदारी की। पति के अलावा परिवार के अन्य सदस्य भी जंगल कटने के समर्थक थे, क्योंकि इससे उनकी आजीविका जुड़ी हुई थी, लेकिन चिपको आंदोलन की विचारधारा को भलीभांति समझाने वाली बचनी देवी ने सार्वजनिक हित को महत्वपूर्ण समझाा और इस आंदोलन में सहयोग किया।

वहीं एक साल के संघर्ष के दौरान ठेकेदारों को खाली हाथ वापस जाना पड़ा और इस क्षेत्र में पेड़ों की नीलामी और कटान पर वन विभाग को रोकनी पड़ी। बचनी देवी धीरे-धीरे अपने पति और परिवार जनों को समझााने में भी कामयाब रही। आज उनकी उम्र 80 वर्ष है और उन दिनों की याद ताजा कर वह कहती है कि आंदोलन के दौरान कई बार उनके पति उनसे बात तक नहीं करते थे, फिर भी उन्होंने संयम से काम लिया और दोनों मोर्चों पर सफलता पाई। आंदोलन में उनके साथ रहे धूम सिंह नेगी और सुदेशा बहन का कहना है कि उनमें साहस और हिम्मत के कारण अदवाणी की दूसरी महिलाएं भी आंदोलन में शामिल हुई थी। बचनी देवी का आज भरा-पूरा परिवार है। वह चाहती हैं कि लोग अपने संसाधनों के प्रति जागरूक रहें।

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