दिल्ली के परिवहन व स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने बिना वित्त विभाग की मंजूरी लिए 1 जनवरी से दिल्ली परिवहन निगम के नॉन एसी बसों का किराया 5 रुपये और एसी बसों का किराया 10 रुपये करने की न सिर्फ घोषणा की, बल्कि दिल्ली में जगह-जगह इस संबंध में पोस्टर भी लगा दिया। आए दिन यात्री डीटीसी के कंडक्टर से टिकट को लेकर झगड़ा किया करते हैं। कई बार तो पुलिस को बुलाने की नौबत तक आ जाती है।
मनीष सिसोदिया के निर्वाचन क्षेत्र में अभी भी कई जगहों पर इसके पोस्टर लगे हैं। अगर, सच में किराया कम करना उद्देश्य था तो पहले वित्त विभाग से इस संबंध में मंजूरी लेते और फिर जितनी मर्जी उतनी पोस्टर से दिल्ली को पाट देते, लेकिन इन्हें तो सिर्फ ये दिखाना है कि केंद्र सरकार इसे करना नहीं चाहती। अभी नॉन एसी बसों में दिल्ली के अंदर 5,10,15 तक का किराया है तो एसी बसों में 10,15,20,25 रुपये। वहीं नोएडा सेक्टर 37 तक यह किराया एक साइड से 49 रुपये है तो नॉन एसी बसों में 32 रुपये। नॉन एसी बसों में एक दिन का पास 40 रुपये का है। अगर, आप नोएडा जाते हैं, तो आते-जाते 2रुपये का टोल टैक्स लेना देना होता है, वहीं एसी बसों में आते-जाते 4रुपये का टोल टैक्स लगता है। गाजियाबाद और गुड़गांव वाली बसों का किराया स्लैब अलग-अलग है।
नॉन एसी बसों का मासिक पास जनरल के लिए 815 रुपये और एसी बसों के लिए 1015 रुपये है। दिल्ली यूनिवर्सिटी के बच्चों का पास 115 रुपये मासिक है, 2009-10 तक यह 12.50 रुपये मासिक था और 75 रुपये में 6 महीने का पास बनता था। नॉन एसी और पुरानी लड्ढा बसों में स्टूडेंट्स पूरी दिल्ली में आ-जा सकते हैं। वहीं, दिल्ली यूनिवर्सिटी के पत्र-व्यवहार से पढ़ाई करने वालों को घर से आने-जाने वाले रूट पर पास जारी किया जाता है।
वृद्ध, विकलांग या बीपीएल कार्डधारकों को बेहद कम दरों पर रियायती पास बनाया जाता है। सामाजिक कार्यक्रम का ध्यान रखना सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन दिल्ली में सत्तारूढ़ दल इस तरह की राजनीति करेगा ऐसा किसी ने सोचा भी न होगा।
नोटबंदी के बाद से दिल्ली के तीनों नगरनिगमों ने सबसे ज्यादा टैक्स कलेक्शन किया गया, लेकिन दिल्ली सरकार पिछले तीन महीनों से कर्मचारियों को वेतन नहीं दे रही है। सिर्फ राजनीति करना इसका मुख्य मकसद है, किसी भी समस्याओं को हल करने में दिल्ली सरकार और अरविंद केजरीवाल की कोई रुचि नहीं है।
ऐसे में दिल्ली सरकार ने बसों के इस्तेमाल में बढ़ोतरी को लेकर किराया कम करने का फैसला तो कर लिया लेकिन इसको लेकर सभी संवैधानिक प्रक्रियाएं पूरी नहीं की गई। ऐसे में दिल्ली के नवनियुक्त उपराज्यपाल और सरकार के बीच टकराव की शुरुआत हो गई। उपराज्यपाल अनिल बैजल ने दिल्ली की केजरीवाल सरकार की डीटीसी बसों के किराए में कटौती की फाइल वापस लौटा दी।
दिल्ली सरकार ने उपराज्यपाल को डीटीसी बसों के किराए 75 फीसदी तक घटाने का प्रस्ताव दिया था। दिल्ली के परिवहन मंत्री सत्येंद्र जैन ने दिसंबर में डीटीसी बसों के किराए में कटौती की घोषणा की थी। जिसकी फाइल इस हफ्ते की शुरुआत में नए उपराज्यपाल अनिल बैजल को भेजी गई थी।
बैजल ने दिल्ली सरकार को प्रस्ताव वापस लौटाने पर ये तर्क दिए हैं कि इस फाइल को भेजने से पहले वित्त मंत्रालय से प्रस्ताव को लेकर कोई चर्चा नहीं की गई। ऐसे में पहले ही से घाटे में चल रही डीटीसी की मौजूदा हालत पर भी ध्यान देना चाहिए था। इस प्रस्ताव को मानने से पहले वित्त मंत्रालय से भी प्रस्ताव पर उनकी प्रतिक्रिया ली जाएगी। वहीं एलजी ने फाइल वापिस करते हुए कहा कि दिल्ली सरकार पूरे प्रस्ताव पर फिर से विचार करे।
ऐसे में डीटीसी और क्लस्टर बसों का किराया 75 प्रतिशत तक घटाने के दिल्ली सरकार के प्रस्ताव की फाइल उपराज्यपाल अनिल बैजल ने लौटा दी तो दिल्ली के परिवहन मंत्री सत्येन्दर जैन को बैजल से मिलने जाना पड़ा। इस बैठक में समझा जाता है कि जैन ने उपराज्यपाल को इस बात से अवगत कराया होगा कि उनकी सरकार ने बस के किरायों में इतनी बड़ी कटौती करने का प्रस्ताव क्यों किया। आम आदमी पार्टी सरकार का यह पहला प्रस्ताव है जिस पर नए उपराज्यपाल द्वारा आपत्ति की गई और पुनर्विचार के लिए उसे आम आदमी पार्टी सरकार के पास वापस भेज दिया गया। लेकिन सूत्रों की मानें तो ‘वित्त विभाग द्वारा इस पर कुछ आपत्ति किए जाने के बाद उपराज्यपाल ने यह फाइल सरकार के पास वापस भेजते हुए इस पर पुनर्विचार करने को कहा है।’
इससे यह स्पष्ट हो गया है कि किसी भी समस्याओं को हल करने में दिल्ली सरकार और अरविंद केजरीवाल की कोई रुचि नहीं है। उनका एकमात्र उद्देश्य नरेंद्र मोदी सरकार को निशाना बनाना और सिर्फ राजनीति करना है।
(गंगेश कुमार)