सुकमा। जीते जी दो वक्त की रोटी की जुगत में इंसान दर-दर की ठोकरें खाता है, पर किसी को अंतिम यात्रा में उसे चार कंधे भी नसीब न हों तो यह माना जा सकता है कि मानवता मर चुकी है। बीते शुक्रवार शाम दोरनापाल में ऐसा ही एक मामला देखने को मिला जब एक बुजुर्ग महिला के निधन होने पर जब उसे चार कंधा नसीब नहीं हुआ तो उसके बेटे और बहू ने ही अपने कंधों को सहारा देकर शव श्मशान तक पहुंचाया। इस दृश्य को देखने वाले इस दृश्य को देख बंगले झांकने लगे क्योंकि एक महिला अर्थी को कंधा दे रही थी।
बता दें कि मिली जानकारी के अनुसार वर्ष 2006 में सलवा जुडूम अभियान के दौरान दोरनापाल राहत एक परिवार दोरनापाल में ही रहने लगा। उस परिवार में एक बुजुर्ग मां के अलावा दो पुत्र थे जिनमें से एक पुत्र नि:शक्त है। दोरनापाल में ठहरने के दौरान बुजुर्ग मां का निधन हो गया जिनका अंतिम संस्कार दोरनापाल से 6 किलोमीटर दूर स्थित उनके गृहग्राम गोरमुण्डा पंचायत के देवरपल्ली में किया जाना था। उनके सभी रिश्तेदार भी इसी गांव में रहते हैं। असहाय परिवार ने वाहन की व्यवस्था करने का प्रयास तो किया पर वाहन का किराया देने तक के पैसे परिवारजनों के पास नहीं थे वहीं, शाम ढलती जा रही थी। ऐसे में मृत महिला के बहू एवं बेटे ने कंधे पर शव को लादकर 6 किलोमीटर दूर देवरपल्ली ले जाने का फैसला किया। घर से पुत्र व बहू कंधे पर लादे मृत मां का शव ले जाने आगे बढ़े तो नि:शक्त बेटा अपनी मृत मां के कपड़े पकड़ कर उनके पीछे चल पड़ा।
वहीं आधे किलोमीटर चलने के बाद प्रत्यक्षदर्शी एक मीडियाकर्मी ने उन्हें रोका और इसकी सूचना स्वास्थ्य केन्द्र में दी और एम्बुलेंस की मांग की। डाक्टर ने एम्बुलेंस नहीं होने की जानकारी दी। इसके बाद निजी वाहन की व्यवस्था करवाई गयी और उसी वाहन से आगे उनके गृहग्राम उसे रवाना कर दिया गया। दोरनापल के चिकित्सक डाक्टर कपिल ने बताया कि एम्बुलेंस किसी कारण से दंतेवाड़ा गई हुई है और कोई भी वाहन उपलब्ध नहीं है। निजी वाहन की व्यवस्था की गयी है और उसका किराया उसी के द्वारा वहन किया जाएगा । गौरतलब है कि दोरनापाल स्वास्थ्य केन्द्र नक्सल प्रभावित दो दर्जन गांवों के लिए एक ही सहारा है। पर आज तक शव वाहन इस केन्द्र को देना जरूरी नहीं समझा गया।