नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी भारतीय जनता पार्टी का हिस्सा तब से है जब इसका दुनिया के सामने कोई अस्तित्व ही नहीं था। आडवाणी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत राष्ट्रिय स्वयंसेवक के तौर पर हिन्दु राष्ट्रवादी संगठन से जुड़ कर की थी। बता दें की 2015 में आडवाणी को दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।
आडवाणी के सहयोग से ही भारतीय जनता पार्टी एक प्रमुख पार्टी के रुप में उभरी थी। साथ ही आडवाणी कई बार इस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुके हैं। लालकृष्ण आडवाणी कभी पार्टी के कर्णधार कहे गए, कभी लौह पुरुष और कभी पार्टी का असली चेहरा भी कहे गए। कुल मिला कर भारतीय जनता पार्टी के इतिहास में लालकृष्ण आडवाणी की काफी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
जन्म, पढ़ाई
लालकृष्ण आडवाणी का जन्म 1927 में वर्तमान पाकिस्तान के कराची में हुआ था। आडवाणी के पिता का नाम श्री के डी आडवाणी था और मां का नाम ज्ञानी आडवाणी था। लालकृष्ण ने अपनी शुरुआती शिक्षा कराची के सेंट पेटरिक्स हाई स्कूल से की थी और उसके बाद की पढ़ाई हेदराबाद के डी.जी नेश्नल कॉलेज से की थी। बाद में हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बीच बटवारा होने की वजह से आडवाणी के परिवार ने मुंबई में पलायन कर लिया था। इसके बाद आडवाणी ने मुंबई से लॉ की पढ़ाई की।
राजनीतिक जीवन
आडवाणी, साल 1942 में राष्ट्रीय स्वंयमसेवक संघ से जुडे़ थे और कराची में इसके प्रचारक के तौर पर काम करते थे। कराची में इस संघ के लिए काम करते हुए आडवाणी ने इसकी कई शाखाओं के निर्माण में सहायता की और विभाजन के बाद भी आडवाणी इस संघ का हिस्सा बने रहे। आडवाणी ने राष्ट्रीय स्वंयमसेवक संघ के प्रचारक के तौर पर अलवर, भरतपुर, कोटा, बुंदी और झालवार में साल 1952 तक काम किया है।
ऐसे बने भारतीय जन संघ का हिस्सा
राष्ट्रीय स्वंयमसेवक संघ के साथ जुड़ने के बास साल 1951 में आडवाणी भारतीय जन संघ का हिस्सा बने। भारतीय जन संघ को जन संघ के नाम से भी जाना जाात था। भारतीय जन संघ की नीव श्याम प्रसाद मुखर्जी ने साल 1951 में रखी थी। भारतीय जन संघ का गठन आरएसएस की सहायता से ही किया गया था। पहले आडवाणी को जन संघ में एस.एस भंडारी का सेकरेट्री नियुक्त किया गया और उसके बाद आडवाणी को जन संघ का जर्नल सेकरेट्री बना दिया गया।
सन् 1957 में आडवाणी दिल्ली आ गए और उन्होनें संसदीय मामलों का काम संभाला। इसके बाद जल्द ही आडवाणी जन संघ की दिल्ली इकाई के प्रेसिडेंट नियुक्त किए गए। इसके बाद आडवाणी साल 1970 से छह सालों के लिए राज्य सभा के सदस्य भी रहे।
सन् 1973 में आडवाणी को जन संघ का प्रेसिडेंट नियुक्त किया गया और नियुक्ति के बाद आडवाणी ने पार्टी के निदेशको का उल्ंघन करने वाले बलराज मधोक को पार्टी से निष्कासित कर दिया था। इसके बाद आडवाणी एक बार फिर गुजरात से राज्यसभा के सदस्य बनें।
सन् 1977 में देश में एमरजेंसी की घोषणा के बाद आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी ने कई सारी पार्टिज के साथ मिल कर जनता पार्टी के तौर पर लोक सभा का चुनाव लड़ा।
जनता पार्टी से भारतीय जनता पार्टी तक का सफर
जनता पार्टी का निर्माण कई सारी राजनीतिक पार्टियों ने मिल कर किया था। ये सारी पार्टियां 1975 में लगाए गए आपातकाल के विरोध में एक साथ आईं थी और मिल कर एक पार्टी का निर्माण किया था। इस इलेक्शन में जनता पार्टी को भारी बहुमत से जीत मिली। इसके बाद मोरारजी देसाई भारत के प्रधान मंत्री बने, आडवाणी सूचना और प्रसारण मंत्री बने और वाजपेयी विदेश मंत्री बने। लेकिन जल्द ही जनसंघ के पूर्व सदस्यो ने इस पार्टी को छोड़ दिया और उन्होनें नई पार्टी भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की।
आडवाणी इस पार्टी के मुख्य नेता बनें और 1982 में एक बार फिर राज्यसभा में पार्टी का प्रतिनिधित्व किया।
बीजेपी का उदय
अटल बिहारी वाजपेयी को बीजेपी का पहला प्रेसिडेंट नियुक्त किया गया। इसके बाद भारतीय जनता पार्टी ने 1984 में लोकसभा के चुनाव लडे़ और इसमें हिंदुत्व को अधिक बल देने के बावजूद भी बीजेपी ये चुनाव नहीं जीत पाई थी।
आडवाणी और राम जन्मभूमि का संबंध
आडवाणी ने 1980 में बीजेपी राम जन्मभूमि को एक अभियान बना लिया था। विश्व हिंदु परिषद ने अयोध्या में बनी बाबरी मसजिद के स्थल पर हिंदु के देवता भगवान राम का मंदिर बनवाए जाने के लिए आंदोलन शुरु किया था। इस आंदोलन को इस विश्वास के साथ शुरु किया गया था की बाबरी मसजिद के स्थल पर ही भगवान श्री राम का जन्म हुआ था। साथ ही ये भी की बाबरी मसजिद से पहले उस स्थान पर एक मंदिर था जिसे बाबर ने बाबरी मसजिद के निर्माण के लिए ध्वस्त कर दिया था। बीजेपी ने इस अभियान को अपना समर्थन दिया और इसे अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल कर लिया। ऐसा करने से बीजेपी को 1989 में हुए आम चुनाव में काफी फायदा भी मिला, लेकिन फिर भी बीजेपी चुनाव नहीं जीत पाई।
हालांकि इस चुनाव के बाद कांग्रेस ने सरकार बनाने से मना कर दिया था। इस कारण वीपी सिंह की राष्ट्रीय मोर्चा ने बीजेपी के साथ हाथ मिला कर नई सरकार का गठन किया।
इसके बाद आडवाणी ने 1990 में प्रार्थना की पेशकश में बाबरी मसजिद पर एक जूट होने के लिए रथ यात्रा निकाली थी। इस रथ यात्रा को गुजरात के सोमनाथ से शुरु किया गया था और इसको उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से में पहुंचने के बाद इस यात्रा को बिहार की सत्ता पर उस समय काबिज लालू प्रसाद यादव द्वारा रोका गया था। इसके बाद 1991 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस के बाद सबसे ज्यादा वोट पाने वाली पार्टी बीजेपी ही बनी थी।
अपनी यात्रा के खत्म होने के 2 साल बाद और सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन देने के बाद भी 1992 में कल्याण सिंह की कथित सहभागिता के साथ बाबरी मसजिद को ध्वस्त कर दिया था। बता दें की बाबरी मसजिद विधवंस मामले में आडवाणी मुख्य आरोपी है।