नई दिल्ली। देश में जहां डवलेपमेंट हुआ तो वही आज भी कुछ गांव ऐसे हैं जहां लोग शुद्ध पानी तक के लिए तरस रहे हैं। देश के ग्रामीण क्षेत्रों में शुद्ध पेयजल आपूर्ति एक बड़ी समस्या है। राष्ट्रीय स्तर पर 75 हजार से अधिक गांव के लोग अभी भी प्रदूषित पानी पीने को मजबूर है। इसके चलते जल जनित ढेर सारी बीमारियों के साथ कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से भी कई क्षेत्रों में लोग ग्रसित हो रहे हैं। हर गांव को शुद्ध पेयजल आपूर्ति करने को लेकर सरकार ने अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की है।
बता दें कि बारिश के मौसम में ग्रामीण क्षेत्रों में पीने के पानी का संकट और गहरा जाता है। ज्यादातर लोगों को दूषित पानी पीने को मजबूर होना पड़ता है। राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री नरेंद्र तोमर ने स्वीकार किया कि देश में लगभग 75 हजार गांवों में शुद्ध पेयजल की आपूर्ति नहीं नहीं हो पा रही है। इनमें 28 हजार गांव ऐसे हैं, जहां के भूजल में घातक जहरीले तत्व मिला हुआ है। इस तरह का पानी पीने वाले लोगों को कैंसर जैसे रोग हो रहे हैं।
साथ ही इनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों और गंगा किनारे बसे गांवों के लोग आर्सेनिक व फ्लोराइड मिश्रित पानी पीने को मजबूर हैं। इसी तरह राजस्थान और कुछ अन्य क्षेत्रों में फ्लोराइड जैसा घातक तत्व मिला हुआ है। तोमर ने माना कि गंगा किनारे के गावों में आर्सेनिक मिश्रित भूजल है। जल जनित बीमारियों से लोगों के स्वास्थ्य की मुश्किलों को देखते हुए सरकार ने राष्ट्रीय जल गुणवत्ता उप मिशन शुरु करने का फैसला लिया है। इसके लिए 25 हजार करोड़ रुपये की धनराशि का प्रावधान किया गया है। इसके लिए राज्य सरकारों से प्रस्तावित परियोजनाओं का मसौदा पेश करने को कहा गया है।
वहीं तथ्य यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 15 फीसद घरों में ही नलों से पेयजल की आपूर्ति हो रही है। सरकार का दावा है कि कुल 53 फीसद ग्रामीण क्षेत्रों में पाइप से पानी की आपूर्ति हो रही है। तोमर ने कहा कि सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में शत प्रतिशत शुद्ध पेयजल आपूर्ति के लिए प्रतिबद्ध है। मनरेगा जैसी योजना का 65 फीसद काम जल संरक्षण पर हो रहा है।