भोपाल। भोपाल गैस त्रासदी को भले ही आज 32 साल बीत गए है। लेकिन अगर आज भी इस भयानक रात को याद करें तो मन सिहर उठता है। ऐसा लगता है कि मानो वो तस्वीरें जैसे आपके सामने से एक एक करके गुजर रही हो। उन चीखों की गूंज आज भी उतनी ही तेज सुनाई दे रही हो, अपनो को खोने का शोर जैसे आज भी उन्हें वापस लाने की आवाज लगा रहा हो, वो सन्नाटा जैसे आज भी आपको दोबारा खाने के लिए आमादा हो…वो दर्द जैसे आज भी उतना ही ताजा हो…हजारों मौते हुई…लेकिन उनका गुनहगार कोई नहीं।
जानें क्या हुआ था उस रात:-
2 और 3 दिसंबर 1984 की रात को भोपाल में मौत का ऐसा तांडव हुआ जिसका शायद किसी को अंदाजा भी नहीं था। लोग और दिनों की तरह अपने रोजमर्रा के कामकाज को निपटाकर हजारों सपने संजोए सो रहे थे इस बात से अंजान की ये रात उन पर ऐसे बरपेगी जिसकी गूंज सालों तक लोगो को सुनाई देगी।अचानक यूनियन कार्बाइट की फर्टिलाइजर फैक्ट्री से जहरीली गैस का रिसाव हुआ जिसने हजारों लोगो को अपनी चपेट में ले लिया। इस भयानक हादसे से 30,000 लोगों की मौत हो गई थी और जो बचे उनके फेफड़े काफी कमजोर पड़ गए थे। यहां तक की कई लोगों को अपनी आंखो की रोशनी भी गवानी पड़ी।
32 साल से चल रहा है इलाज:-
इस त्रासदी की मार झेल रहे पीड़ितों ने साल 1998 में बेहतर सुविधा की मांग के लिए देश की सबसे बड़ी अदालत का दरवाजा खटखटाया। जिसके बाद साल 2012 में कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र सरकारो को पीड़ितो की मेडिकल हिस्ट्री कंप्यूटराइज करने का आदेश दिया। इसके साथ ही मरीजों का मेडिकल हेल्थ कार्ड जारी कर इलाज शुरु करने और उनकी कंडीशन पर रिसर्च शुरु करने का आदेश भी दिया था। कोर्ट के आदेश को 4 साल बीत गए है लेकिन जमीनी हकीकत की बात करे तो ये पीड़ित आज भी परेशानियों से जूझ रहे हैं।
मुआवजे की जंग आज भी जारी:-
दुनिया की इस बड़ी त्रासदी के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 705 करोड़ रुपए मुआवजा तय किया। 21 साल बाद दवाब में आकर सरकार ने इस मुआवजे की राशि को 7,728 करोड़ रुपए कर एक क्यूरेट पिटीशन डाली। जिसकी वजह यह थी कि पहले के समझोते में पीड़ितो की संख्या काफी कम बताई गई थी। हालांकि पिछले 6 सालों में इस याचिका पर एक बार भी सुनवाई नहीं हुई।
इस हादसे को 32 साल बीत जाने के बाद भी कुछ पीड़ितो को स्थायी विकलांग नहीं बल्कि अस्थायी विकलांग की श्रेणी में रखा जा रहा है जिसके कि उन्हें सही मुआवजा न मिल सके। जिसके चलते सरकार उन्हें टेंपरेरी डिसएबिलिटी की कैटेगरी में ही रख रही है। मुआवजे की लड़ाई में कई साल बीत चुके है और उन लोगों की ये लड़ाई की अब भी जारी है।