देहरादून। 16-17 जून की तारीख को केदारनाथ और लामबगड़ गोविंदघाट की त्रासदी में सरकारी आकंड़ों के मुताबिक 6800 लोग मारे गए या लापता हुए जिसमें 1124 उत्तराखंड के बताये जाते हैं |अपुष्ट रूप में यह आकंड़ा 12000 से उपर बैठता है जिसमें सैकड़ों तो घोड़े-खच्चर के साथ चलने वाले लोग बिना पंजीयन के मजदूर, कुली, गाइड और गर्मी की छुट्टियों में काम करने यहां पहुंचे विद्यालयों के छात्र थे।
यह प्राकृतिक आपदा 16 और 17 जून की रात्रि को अचानक बादल फटने के कारण मंदाकिनी व अलकनंदा के उग्र होने से आयी। दोनों क्षेत्रों में यह इंतनी भयंकर आपदा थी कि जिसमें उत्तराखंड के 4219 गावों की बिजली, 1187 पेयजल योजनाएं और 2229 सड़क मार्ग अवरुद्ध हो गए। 13 मोटर पुल 42 पैदल पुल बहे, रुद्रप्रयाग चमोली उत्तरकाशी टिहरी व पिथौरागढ़ जिले अधिक प्रभावित हुए। आपदा के नाम पर कुछ नेता और अधिकारियों की मौज भी आई और 1 लाख से जादा परिवार उजड़े। कुछ को आफत मिली पर राहत आजतक नहीं मिली। इस घटना के तीन वर्ष बाद परिस्थिति कुछ बदली है, केदारनाथ नाथ में सरकारी पैंसा ठिकाने लगाने का काम आज तक जारी है। पर एक अदद रोप-वे पर काम शुरू नहीं हुआ। जबकि उत्तराखंड के चार धाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री का धार्मिक पर्यटन एवं प्रकृति दर्शन सुचारू रूप से चल रहा है।
उत्तराखंड एक पर्वतीय भगौलिक संरचना का राज्य होने के कारण यहां कुदरती आपदाएं कभी भी आ सकती हैं। यहां बादल फटने, भूचाल आने और भूस्खलन होने जैसी घटनाएं एक आम बात है।चातुरमास में यहां छोटे-मोटे गाड़-गधेरे भी भबक कर बिकराल रूप धारण कर लेते हैं | 16 जून 2013 की आपदा को मानव जनित आपदा भी कहा जाता है क्योंकि इस क्षेत्र में लोगों ने नदी के घर (सूख गए बहाव क्षेत्र ) में मकान, होटल, धर्मशाला, सड़क सहित कई अवैध निर्माण भी कर दिए थे। धार्मिक पर्यटन ने पिकनिक का रूप ले लिया था तथा वाहन संख्या अत्यधिक बढ़ गई थी। इस घटना से बहुत कुछ सीखा जा चुका है जिससे आपदा आने पर जनहानि न हो। उस आपदा में हमारी सेना के सहयोग को नहीं भुलाया जा सकता जिसने आपदा में घिरे हजारों तीर्थयात्रियों को दिन-रात परिश्रम करके बचाया था। हम सेना का आभार प्रकट करते हुए दिवंगतों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
(हरीश मैखुरी, चमोली)